Gangaur Vrat katha गणगौर पौराणिक कथा : आज सुहाग का सबसे बड़ा पर्व गणगौर, जरूर पढ़ें यह कथा
इस दिन को भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रेम और विवाह दिवस के रूप में मनाया जाता है। अलगाव के कई दिन और महीनों के बाद देवी पार्वती भगवान शिव के साथ फिर से आए थे। विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र और वैवाहिक खुशी के लिए मां गौरा से प्रार्थना करती हैं जबकि अविवाहित युवतियां आदर्श जीवन साथी के लिए प्रार्थना करती हैं।
एक बार महादेव पार्वती वन में गए चलते-चलते गहरे वन में पहुंच गए तो पार्वती जी ने कहा-भगवान, मुझे प्यास लगी है। महादेव ने कहा, देवी देखो उस तरफ पक्षी उड़ रहे हैं। वहां जरूर पानी होगा। पार्वती जी वहां गई। वहां एक नदी बह रही थी। पार्वती ने पानी की अंजुली भरी तो दुब का गुच्छा आया, और दूसरी बार अंजुली भरी तो टेसू के फूल, तीसरी बार अंजली भरने पर ढोकला नामक फल आया।
इस बात से पार्वती जी के मन में कई तरह के विचार उठे पर उनकी समझ में कुछ नहीं आया। महादेव जी ने बताया कि, आज चैत्र माह की तीज है। सारी महिलाएं अपने सुहाग के लिए गौरी उत्सव करती हैं। गौरी जी को चढ़ाए हुए दूब, फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रहे हैं।
पार्वती जी ने महादेव जी से विनती की, कि हे स्वामी, दो दिन के लिए आप मेरे माता-पिता का नगर बनवा दें, जिससे सारी स्त्रियां यहीं आकर गणगौरी के व्रत उत्सव को करें, और मैं खुद ही उनको सुहाग बढ़ाने वाला आशीर्वाद दूं।
महादेव जी ने अपनी शक्ति से ऐसा ही किया। थोड़ी देर में स्त्रियों का झुंड आया तो पार्वती जी को चिंता हुई, और महादेव जी के पास जाकर कहने लगी। प्रभु, में तो पहले ही वरदान दे चुकी, अब आप दया करके इन स्त्रियों को अपनी तरफ से सौभाग्य का वरदान दें, पार्वती के कहने से महादेव जी ने उन्हें, सौभाग्य का वरदान दिया।
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गणगौर पूजा की व्रत कथा
गणगौर कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव, पार्वती माता और नारद जी साथ में भ्रमण के लिए निकलें और चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन एक गांव पहुंचे। उस गांव की गरीब महिलाओं को जब उनके आने की खबर मिली तो वो थाल में हल्दी और अक्षत लेकर उनके स्वागत के लिए पहुंच गई। मां पार्वती उन महिलाओं की निश्चल भावना से प्रसन्न हुईं और उन पर सुहाग रस का आशीर्वाद बरसा दिया।
कुछ ही समय पश्चात् धनी वर्ग की महिलाएं सोने चांदी की थाली में तरह तरह के पकवान लेकर और सोलह श्रृंगार किए भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुंची। इन स्त्रियों को देखने के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से प्रश्न किया कि तुमने तो सारा सुहाग रस निर्धन वर्ग की महिलाओं को दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी? इसके जवाब में मां पार्वती बोलीं कि उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया है। मैं इन महिलाओं को अपनी उंगली चीरकर रक्त छिड़क कर सुहाग का वरदान दूंगी।
माता पार्वती ने उन महिलाओं को आशीर्वाद दिया कि वो वस्त्र, आभूषण और बाहरी मोह-माया का त्याग कर अपने पति की सेवा तन मन और धन से करेंगी। उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी।
इस घटना के बाद पार्वती मां भगवान भोलेनाथ से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई। माता ने स्नान के बाद बालू से भगवान शिव की मूर्ति बनाई और उसकी पूजा की। भोग लगाकर तथा प्रदक्षिणा करके दो कण का प्रसाद ग्रहणा किया और माथे पर टीका लगाया। उस पार्थिव लिंग से शिवजी स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने माता पार्वती को वरदान दिया कि आज के दिन जो महिला मेरा पूजन करेगी और तुम्हारा व्रत करेगी उसका जीवनसाथी चिरंजीवी रहेगा और मोक्ष की प्राप्ति होगी।