उत्तर-पूर्वी तंजानिया स्थित किलिमंजारो पर्वत अफ्रीका महाद्वीप का सबसे बड़ा पर्वत है और विश्व का सबसे उंचा एकल पर्वत है। साथ ही यह 'सेवेन समिट्स' का चौथा सबसे ऊंचा पर्वत भी है।
किलिमंजारो पर्वत तीन अलग-अलग ज्वालामुखियों -कीबो, मावेंजी और शिरा से मिलकर बना हुआ एक संयुक्त ज्वालामुखी या 'स्ट्रेटवोल्केनो' है। 'स्ट्रेटा' का अर्थ होता है परत और 'वोल्केनो' का ज्वालामुखी। ज्वालामुखी के विस्फोट से निकला लावा ठंडा होने पर जम जाता है। कई सालों तक जब विस्फोट से निकला लावा जमता जाता है तो इससे कई परतें बनती जाती हैं। इस तरह की प्रक्रिया सालों साल चलती जाती है और हर बार के विस्फोट से एक नई परत बनती है।
विशाल किलिमंजारो पर्वत इसी प्रकिया से बना है। इसके बनने की शुरुआत लाखों साल पहले हुई थी। किलिमंजारो की दो चोटियां मावेंजी और शिरा ज्वालामुखी निष्क्रिय हैं, जबकि तीसरी और सबसे ऊंची चोटी कीबो सुप्त है और इसमें आगे भी विस्फोट हो सकते हैं। धरती से शिखर तक इसकी ऊंचाई 4,600 मीटर है।
कीबो का पिछला बड़ा विस्फोट साढ़े तीन लाख वर्ष पूर्व हुआ था, जबकि 200 साल पहले इसमें कुछ हलचल हुई थी। किलिमंजारो पर्वत के कीबो ज्वालामुखी की ऊहुड़ु चोटी (5895 मीटर) यहां की सबसे ऊंची चोटी है।
जोहानस रेबमेन नामक एक जर्मन मिशनरी ने 1848 में किलिमंजारो पर्वत को खोजा था। उन्होंने रॉयल जियॉग्राफिकल सोसायटी को बर्फ से ढंके पहाड़ की अपनी खोज के बारे में बताया। लेकिन उस समय के विशेषज्ञों को भूमध्यरेखा के पास स्थित किसी बर्फ से ढंके पहाड़ की संभावना पर संदेह था।
किलिमंजारो पर्वत पर पहली बार सफलतापूर्वक चढ़ाई की गई थी 1889 में। हेंस मेयर (जर्मनी), योआनास किन्याला लौवो (तंज़ानिया) और लुडविग पुर्तस्चेलर (ऑस्ट्रिया) नाम के तीन पर्वतारोहियों को यह इतिहास रचने में करीब छः हफ्तों का समय लगा था, जबकि आज एक साधारण पर्वतारोही भी किलिमंजारो पर 5-6 दिनों में चढ़ाई कर सकता है।
आज हर साल 20,000 से भी ज्यादा लोग किलिमंजारो पर चढ़ाई का प्रयास करते हैं। इनमें से लगभग 10 लोग इस प्रयास में अपनी जान गंवा बैठते हैं और केवल दो-तिहाई ही शिखर तक पहुंच पाते हैं। कीबो ज्वालामुखी पर स्थित किलिमंजारो की सबसे ऊंची उहुड़ु चोटी पर एक लकड़ी के बॉक्स में एक किताब रखी गई है। यहां तक चढ़ाई करने वाले पर्वतारोही अपने अनुभव इस किताब में दर्ज करते हैं। फ्रांस के वॉल्टी डेनियल (87 वर्ष) किलिमंजारो पर्वत के शिखर तक चढ़ाई करने वाले सबसे अधिक उम्र के व्यक्ति हैं।
किलिमंजारो पर्वत के शिखर पर मौजूद बर्फ तेजी से पिघलती जा रही है। 1912 से तुलना की जाए तो यहां की 80 प्रतिशत बर्फ पिघल चुकी है और केवल 20 प्रतिशत ही रह गई है। यह स्थिति ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बनी है। यदि स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ तो यह अनुमान लगाया गया है कि 2020 तक यहां की सारी बर्फ गायब हो चुकी होगी।
किलिमंजारो पर्वत 756 वर्ग किमी में फैले किलिमंजारो राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। यह उद्यान यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है। यह धरती के उन गिने-चुने स्थानों में से एक है, जहां लगभग हर तरह का ईकोलोजिकल सिस्टम मौजूद है, खेती के लायक जमीन से लेकर वर्षावनों तक और एल्पाईन रेगिस्तान से बर्फ तक।
किलिमंजारो ऐसा पर्वत नहीं है, जिस पर आप अकेले जाकर चढ़ाई कर सकें। इसके लिए यह अनिवार्य है कि आप लाइसेंस्ड गाइड के साथ ही चढ़ाई करें और सामान उठाने के लिए कुली की मदद लें। इसके चलते यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता है। किलिमंजारो पर सबसे तेजी से चढ़ाई की गई थी 2001 में इटली के ब्रुनो ब्रुनोद ने। इसके लिए उन्हें कुल 5 घंटे 37 मिनट और 40 सेकंड का समय लगा था।
किलिमंजारो पर सबसे तेज राउंड ट्रिप का रिकॉर्ड यहां के स्थानीय गाइड साइमन म्टय के नाम है, जो दिसंबर 2004 में केवल 8 घंटे और 27 मिनट में इस पर्वत पर चढ़कर वापस आ गए थे।