ग़ालिब का ख़त-22

मुंशी नबी बख्श 'हक़ीर'

Aziz AnsariWD
बंदा परवर, बहुत दिनों से मेरा ध्यान आप में लगा हुआ था। बारे आपके ख़त आने से बहुत खुशी और फ़र्हत हासिल हुई। यह आपने क्या िखा है कि मैं बदायूं के हकीम की दवा कर रहा हूँ। तेरी बताई हुई दवा अभी नहीं कर सकता। आप ग़ौर तो कीजिए, मैंने तो दवा नहीं बताई। एक तरकीब पानी के मुदब्बिर करने की अ़र्ज है।

साहिबान-ए-अमराज़-ए-सौदाविया 'मुज़म्मिना' को इस पानी का पीना नफ़ा करता है। और नफ़ा इसका बरसों में जाहिर होता है और इस पानी के इस्तेमाल के ज़माने में दवा को मुमानअत नहीं जो दवा चाहिए, खाइए, जो ग़िज़ा चाहिए, तनावुल फ़रमाइए। सिर्फ़ यह पानी कब दवा हो सकता है। आप शौक़ से इस पानी को शुरू कीजिए और दवा तबीब की बदस्तूर किए जाइए और ग़िज़ा मुआफ़िक़ तबीब के खाए जाइए।

पानी जब पीजिए, तब यही पानी पीजिए। जहाँ जाइए आदमी को हुक्म कीजिए, कि एक सुराही इस पानी को ले लेवे। और यह भी आपके ख़्याल में रहे कि अगर नागाह कोई ज़रूरत लाहक़ हो और यह पानी मौजूद न हो और आप पानी ब-हसब-ए-जरूरत पी लेवें, तो भी महल-ए-अंदेशा नहीं है। मुंशी हरगोपाल सतूदा ख़िसाल के बाब में जो कुछ लिखा था, मालूम हुआ। ख़ुदा की क़सम।

  आप उनसे मेरा सलाम कहिएगा और यह कहिएगा कि मैं तुमसे राज़ी और खुश हूँ। यह चाहता हूँ कि तुम मुझसे राज़ी रहो और मुझको अपना ‍ख़िदमत गुज़ार समझो। रुबाइयाँ आपकी भेजी हुई मेरे पास मौजूद हैं। बाद इस्लाह के आपके पास भेज दूँगा।      
मुझको उनसे हरगिज़ मलाल नहीं हुआ, बल्कि मुझको यह ग़म था कि कहीं वह अपनी ग़लतफ़हमी से मुझसे मलूल न हुए हों। बहरहाल, इस गुफ़्तगू में मुंशी साहिब ने एक फ़िक़रा अपनी मदह में बढ़वा लिया। आप उनसे मेरा सलाम कहिएगा और यह कहिएगा कि मैं तुमसे राज़ी और खुश हूँ। यह चाहता हूँ कि तुम मुझसे राज़ी रहो और मुझको अपना ‍ख़िदमत गुज़ार समझो। रुबाइयाँ आपकी भेजी हुई मेरे पास मौजूद हैं। बाद इस्लाह के आपके पास भेज दूँगा। घबराइए नहीं, ख़ातिर जमा रखिए।

असदुल्ला