कहानी पाकिस्तान के पहले महिला बैंड की

मंदिरा कुमार
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उन दोनों के लिए संगीत पारिवारिक संस्कार की तरह रहा है। हर पारिवारिक कार्यक्रम में परिजन खासतौर पर दादी और चाचा गाते-बजाते रहे हैं। हालांकि दोनों ने ही संगीत को करियर के तौर पर लेने की कोई योजना नहीं बनाई थी, ये बस यूं ही मजाक-मजाक में हो गया। ये कहानी है पाकिस्तान के पहले महिला बैंड की।

हाल ही में साउथ-एशियन बैंड फेस्टिवल के तहत अपनी प्रस्तुति देने आईं दोनों बहनों जेबा और हानिया ने एक टीवी कार्यक्रम के लिए शांतनु मोइत्रा और स्वानंद किरकिरे के साथ मिलकर एक गाना तैयार किया है। दोनों नए एलबम पर काम कर रही हैं, जिसके मार्च तक रिलीज हो जाने की उम्मीद है। जेबा कहती है कि - 'अब जबकि पूरे एशिया में अलग-अलग तरह के परिवर्तन हो रहे हैं तो म्यूजिक टेस्ट में भी परिवर्तन हो रहे हैं, जाहिर है इससे बेहतर समय संगीत के लिए नहीं हो सकता है।'

खैबर पख्तूनख्वा (जिसे नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्राविंस भी कहा जाता है) हिस्से से आने वाली कजिन्स हानिया असलम और जेबुन्निसा बंगश ने पाकिस्तान का पहला महिला बैंड बनाया। दोनों ही पाकिस्तान के उस हिस्से से आती हैं, जिस पर तालिबानियों का खासा प्रभाव है। शायद इसलिए भी दोनों को वैसे संघर्ष और प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा जैसा कि इस हिस्से की महिलाओं के लिए मानकर चलते हैं। हालांकि दोनों वहां कभी नहीं रहीं, लेकिन पारिवारिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए उनका वहां आना-जाना लगा रहता है।

जेबा(जेबुन्निसा) बताती हैं कि - 'हमारे जीवन में संगीत की शुरुआत वैसे तो 6 साल की उम्र में ही हो गई थी।' लाहौर में गर्मी की एक दोपहर को अपने परिवार के साथ हानिया और जेबा की दादी ने जब पख्तून लोक गीत गाया और चाचा ने रबाब बजाकर उनका साथ दिया। चाचियों के साथ सब बहनें भी धीरे-धीरे उस गाने में शामिल हो गईं। उस महफिल में शमशाद बेगम और बेगम मल्लिका पुखराज की गजलें गाई गईं और फिर राजकपूर की फिल्म के गाने और तभी नींव पड़ी हानिया और जेब के बैंड की। उनकी दादी खुद कविताएं लिखती हैं और तीन भाषाएं भी जानती हैं। पख्तूनी लोक-संगीत से शुरू हुई हानिया और जेबा की कहानी ने पहले महिला पाकिस्तानी रॉक बैंड तक की उड़ान तय की है।

सालों बाद दोनों यूएस में पढ़ने गईं। वहां दोनों दूर-दूर रहती थीं, लेकिन एक दिन जब दोनों मिलीं तब भटकने और एक-दूसरे की दुनिया में झांकने, चुहल करने और मजाक उड़ाने के बाद एकाएक हानिया अपना गिटार उठा लाई और जेबा ने यूं ही हल्का-फुल्का और तुरत-फुरत बना 'चुप' गाना शुरू किया और फिर वे पख्तून लोक संगीत पर लौट आईं। हानिया ने थोड़ा बहुत गिटार सीखा और फिर खरीद तो लिया, लेकिन वे इसे आगे नहीं सीख पाई, क्योंकि इसे सिखाने वाले सारे युवा लड़के थे। फिर घर पर ही तबला सीखा। जेबा ने अलग-अलग विधाओं में हाथ आजमाए और फिर घर लौटकर पाकिस्तान के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक उस्ताद मुबारिक अली खान से गाना सीखा। बस इतनी ही तालिम है दोनों के हिस्से में।

चूंकि दोनों के परिवार उस तरह से कट्टर नहीं रहे, इसलिए दोनों को ही संगीत की दुनिया में वैसा संघर्ष नहीं करना पड़ा, लेकिन हानिया कहती हैं कि - फिर भी संगीत की दुनिया पुरुष-शासित है और इसलिए यहां स्थापित होने के लिए उन्हें अलग तरह के संघर्ष करने पड़ रहे हैं। यहां मामला जेंडर या फिर सांस्कृतिक स्तर पर नहीं है, लेकिन कॉपीराइट और मीडिया मालिकों की इच्छा के खिलाफ संघर्ष करना पड़ रहा है।

2007 में उनका पहला एलबम 'चुप' नाम से आया और वही गाना जो जेबा ने यूएस में गाया था, एलबम का टाइटल ट्रैक बना। पाकिस्तानी संगीतकार और प्रोड्यूसर मेकाल हसन ने उनके काम की तारीफ की और कोक स्टूडियो पाकिस्तान ने उनके काम को पूरे देश के सामने प्रस्तुत किया। दोनों इस बात से खुश हैं कि परिवार और दोस्तों के बीच उनके काम की तारीफ होती है और परिवार से उन्हें खूब प्रोत्साहन मिल रहा है।

आलोचक भी कहते हैं कि उन्होंने संगीत में नए प्रयोग किए हैं, लेकिन साथ ही ये कहना नहीं छोड़ते हैं कि उनका संगीत अच्छा है, लेकिन एक्स्ट्राऑर्डिनरी नहीं। दोनों बहनें भी ये जानती हैं कि अभी उन्हें बहुत कुछ सीखना है, काम करना है।

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