प्यार करना तो बहुत आसान प्रेयसि ! अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है। है बहुत आसान ठुकराना किसी को, है न मुश्किल भूल भी जाना किसी को, प्राण-दीपक बीच साँसों को हवा में याद की बाती जलाना ही कठिन है। प्यार करना तो बहुत आसान प्रेयसि! अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है। स्वप्न बन क्षण भर किसी स्वप्निल नयन के, ध्यान-मंदिर में किसी मीरा गगन के देवता बनना नहीं मुश्किल, मगर सब- भार पूजा का उठाना भी कठिन है। प्यार करना तो बहुत आसान प्रेयसि! अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है। चीख-चिल्लाते सुनाते विश्व भर को, पार कर लेते सभी बीहड़ डगर को, विष-बुझे पर पंथ के कटु कंटकों की हर चुभन पर मुस्कराना ही कठिन है। प्यार करना तो बहुत आसान प्रेयसि! अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है। छोड़ नैया वायु-धारा के सहारे, हैं सभी ही सहज लग जाते किनारे, धार के विपरीत, लेकिन नाव खेकर हर लहर को तट बनाना ही कठिन है। प्यार करना तो बहुत आसान प्रेयसि! अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है। दूसरों के मग सुगम का अनुसरण कर है बहुत आसान बढ़ना ध्येय पथ पर, पांव के नीचे मगर मंजिल बसाकर विश्व को पीछे चलाना ही कठिन है। प्यार करना तो बहुत आसान प्रेयसि! अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है। वक्त के संग-संग बदल निज कंठ-लय-स्वर, क्या कठिन गाना सुनाना गीत नश्वर, पर विरोधों के भयानक शोर-गुल में एक स्वर से गीत गाना ही कठिन है। प्यार करना तो बहुत आसान प्रेयसि! अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है। अभिमान अभी बाकी है.....
सब लेकिन सपनों का अभिमान अभी बाकी है। अब वह कहाँ बहार जिसे छू मिट्टी मुस्काने लगती थी? बुलबुल वह उड़ गई कि जिसके साथ खिजां गाने लगती थी, भीड़ कहाँवह भौरों की अब सुन जिनकी मदहोश रागिनी, सुध-बुध सकल बिसार कली निज घूंघट खिसकाने लगती थी, सोच रहा तू आज हँसेगा कैसे अब जीवन में, लेकिन हँसने को हर वक्त नियति का भाग्य-विधान अभी बाकी है। स्वप्न मिटे सब लेकिन सपनों का अभिमान अभी बाकी है॥ आज न तुम वह, आज न मैं वह, आज न वे सपनों के बादल, आज न वे चुम्बन-आलिंगन, आज न वह प्राणों में हलचल, काल-पराजित गलबहियाँ वे, भृकुटि-विलास हुए अंतर्हित, वे मोती सी रातें बीतीं, वे हीरों से दिवस गए ढल, समय भुला देता है सब कुछ, इसीलिए तो प्रेयसि मेरा- है भर गया घाव दिल का, पर हाय निशान अभी बाकी है। स्वप्न मिटे सब लेकिन सपनों का अभिमान अभी बाकी है। वह आई बरसात कि सीमा तोड़ नयन-सागर लहराया, सुख-दुख डूबे, सपने डूबे, डूबे प्राण, न कुछ बच पाया, वे तड़कीं बिजलियाँ कि लोचन अब तक खुल खुल झप जाते हैं, ऐसा टूटा वज्र कि तब से हाय न मैं अब तक सो पाया, और आज अब शेष न वह बरसात, न बादल, बिजली, ओले, घुमड़ रहा नयनों में पर सुधि का तूफान अभी बाकी है। स्वप्न मिटे सब लेकिन सपनों का अभिमान अभी बाकी है॥ आँसू आज बहाता है तू मेरे मन अपने दुर्दिन पर, लेकिन यह तो सोच कि किसता साथ दिया सुख ने जीवन भर, सुख दुख देने को आता है, सपने मिटने को बनते हैं, 'आने-जाने, बनने-मिटने' का ही नाम जगत यह सुन्दर अरे हुआ क्या यदि तेरा सुख-स्वप्न-स्वर्ग ढह गया अचानक, करने को निर्माण मगर जग में वीरान अभी बाकी है। स्वप्न मिटे सब लेकिन सपनों का अभिमान अभी बाकी है। ऊबड़ खाबड़ पंथ, घिरा है चारों और सघन अँधियारा, नीचे धरती दूभर, ऊपर गरज रहा है अंबर सारा, सूनेपन का साथी कर का दीपक भी बुझ गया अचानक, और डुबाने बढ़ी आ रही नयनों में आँसू की धारा, आज न कोई मीत साथ दे जो इस पथ पर, लेकिन प्यारे! हरदम तेरे साथ कंठ में तेरा गान अभी बाकी है। स्वप्न मिटे सब लेकिन सपनों का अभिमान बाकी है।