फाल्गुन के जाने के बाद उल्लासित रूप से चैत्र मास का आगमन होता है। चहुंओर प्रेम का रंग बिखरा होता है। प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है। दिन हल्की तपिश के साथ अपने सुनहरे रूप में आता है तो रातें छोटी होने के साथ ठंडक का अहसास कराती हैं। मन भी बावरा होकर दुनिया के सौंदर्य में खो जाने को बेताब हो उठता है।
नववर्ष की शुरुआत का महत्व :-
नववर्ष को भारत के प्रांतों में अलग-अलग तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। ये सभी महत्वपूर्ण तिथियां मार्च और अप्रैल के महीनों में आती हैं। इस नववर्ष को प्रत्येक प्रांतों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। फिर भी पूरा देश चैत्र माह में ही नववर्ष मनाता है और इसे नवसंवत्सर के रूप में जाना जाता है।
गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी, नवरेह, चेटीचंड, उगाड़ी, चित्रेय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नवसंवत्सर के आसपास आती हैं। इसी दिन से सतयुग की शुरुआत मानी जाती है। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।