पुरुषों में ऑटिज्म अधिक होता है

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ऑटिज्म एक मानसिक व्याधि है, जो महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक पाई जाती है। इस बीमारी के बारे में इंटरनेट के माध्यम से कई प्रकार की भ्रांतियाँ फैल रही हैं, इनसे बचना जरूरी है। ऑटिज्म को दवाओं द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता, यह आजीवन रहने वाली बीमारी है।

किसी भी व्यक्ति में भावनात्मक समझ व स्किल की कमी, सामाजिक व्यवहार या इंटरैक्शन में स्पष्टता का अभाव, भाषा व संवाद क्षमता में कमजोरी, स्टीरियोटाइप्ड व्यवहार आदि से उसके ऑटिज्म मरीज होने का पता चलता है। यह बीमारी जन्म से होती है। यह अमीर या गरीब किसी भी तबके में पाई जा सकती है। ऑटिज्म के मरीज को मिर्गी आने की संभावना भी होती है।

ऑटिज्म के मरीज को मैनेज करने का एक मात्र तरीका है कि उसके व्यवहार को परखें और समझें कि वो क्या कहना चाहता है। ऐसे लोग अपनी हर इच्छा को तीखे या दबे हुए व्यवहार से ही बताना चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि चित्रकला की क्लास है और ऑटिज्म मरीज को चित्र करना अच्छा नहीं लग रहा है, तो वह ड्राईंग शीट को फाड़ सकता है। ऐसा करने पर शिक्षक उसे डाँटने या मारने के बजाय उसकी समस्या को समझ कर उसे कोई कार्य सौंप सकते हैं। इन सबसे पहले ऑटिज्म मरीज की पहचान होना जरूरी है। तभी ऐसे मरीजों को मुख्य धारा में शामिल किया जा सकता है।

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ऑटिज्म के मरीज अंतर्मुखी होते हैं, यह समाज से नहीं जु़ड़ पाते। यदि जुड़ते भी हैं, तो उनका व्यवहार काफी अलग होता है, जैसे हद से ज्यादा फॉरमल होना। ऐसे लोग किसी भी बात को तोते की तरह दोहराते भी रहते हैं। इनके दैनिक दिनचर्या में अगर कोई बदलाव आ जाए, तो ये मानसिक रूप से काफी परेशान हो जाते हैं।

ऑटिज्म से पी़डित मरीजों को समुचित देखरेख की जरूरत होती है। ऑटिज्म आजीवन रहने वाली बीमारी है, जिसे दवाइयों से ठीक नहीं किया जा सकता है। सिर्फ भारत ही नहीं, विश्व भर में इस बीमारी के 80 प्रतिशत मरीज पुरुष और मात्र 20 प्रतिशत महिलाएँ हैं। पुरुषों में ऑटिज्म अधिक होने का कोई ठोस कारण अब तक सामने नहीं आया है।

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