बच्‍चों में टीबी

- डॉ.ज्योति संघव

NDND
पिछले दो दशकों में टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ी है। 95 प्रतिशत मरीज विकासशील और अविकसित देशों में हैं जहाँ इस बीमारी का पता लगाने और इलाज के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। एड्स जैसी गंभीर बीमारी ने भी अपने पाँव चारों ओर फैला लिए हैं। यह भी टीबी की बीमारी को बढ़ावा देने में सहायक हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार टीबी महामारी का रूप ले रही है। भारत में हर तीन मिनट में टीबी से मौत हो जाती है। इससे लड़ने के लिए हमें वयस्कों में टीबी की रोकथाम करनी होगी, क्योंकि बच्चों में टीबी वयस्कों के संक्रमण से फैलती है।

बच्चों में टीबी कई तरह से हो सकती है

प्रायमरी कॉम्प्लेक्स, बाल टीबी, प्रोग्रेसिव प्रायमरी टीबी, मिलियरी टीबी (गंभीर किस्म), दिमाग की टीबी, हड्डी की टीबी अथवा टीबी की गठानें।

सामान्यतया मनुष्य में टीबी माइक्रो बेक्टिरियम : ट्यूबरक्लोसिस नामक कीटाणु से होती है। पीड़ित व्यक्ति जब खाँसता है या छींकता है तो यह कीटाणु वातावरण में फैल जाते हैं। इन व्यक्तियों को ओपन केस कहते हैं। जब दूसरा व्यक्ति इन कीटाणु के संपर्क में आता है, जोहवा के कण में रहते हैं, तो साँस द्वारा यह फेफड़ों तक पहुँच जाते हैं और बीमारी पैदा करते हैं।

साधारण तौर पर बच्चों में प्रायमरी कॉम्प्लेक्स होता है। इस बीमारी से बार-बार बुखार आना, लंबे समय तक खाँसी होना, वजन न बढ़ना या वजन घटना, सुस्त रहना, गर्दन में गठानें होना। प्रोग्रेसिव प्रायमरी टीबी में बच्चा ज्यादा बीमार रहता है। तेज बुखार आना, भूख न लगना, खाँसी में कफ आना और छाती में निमोनिया के लक्षणों का पाया जाना। बड़े बच्चों में कभी-कभी कफ में खून भी आता है।

मिलियरी टीबी एक गंभीर किस्म की टीबी है। यह फेफड़ों में सारी जगह फैल जाती है। इसमें बच्चा गंभीर रूप से बीमार रहता है, खाना-पीना छोड़ देता है, सुस्त रहता है, साँस लेने में तकलीफ होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से बेहोशी छाने लगती है।

दिमाग की टीबी दो तरह से होती है। एक मेनिनजाइट्सि के रूप में और दूसरी गठान के रूप में। लक्षण बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करते हैं। उपरोक्त लक्षणों के अलावा सिरदर्द होना, उल्टियाँ होना, झटके आना या बेहोश हो जाना साधारणतया दिमागी टीबी की ओर इशारा करते हैं।

खून की जाँच, छाती का एक्सरे, एनटी टेस्ट, कफ की जाँच, गले की गठान की बायोप्सी, इस बीमारी का पता लगाने में सहायक होती है। कुछ नए टेस्ट जैसे पीसीआर और टीबी एंटीबॉडी टेस्ट भी बाजार में उपलब्ध हैं परंतु यह महँगे होते हैं।

टीबी का इलाज अब सरल और सुगम हो गया है। इलाज नियमित रूप से होने पर यह बीमारी मात्र 6 से 9 माह में ठीक हो जाती है। पहले
दिमाग की टीबी दो तरह से होती है। एक मेनिनजाइट्सि के रूप में और दूसरी गठान के रूप में। लक्षण बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करते हैं
2 माह (इंटेसिव फेस) में तीन या चार दवाइयाँ दी जाती हैं फिर अगले 4 से 6 माह (कंटुनियस फेस) में दो दवाइयाँ दी जाती हैं। दिमागी टीबीमें इलाज लंबे समय तक चलता है।

टीबी से ग्रसित बच्चों में प्रायः कुपोषण व एनीमिया पाया जाता है। पौष्टिक और संतुलित आहार इलाज में सहायक होता है। बीसीजी का टीका लगवाने से गंभीर किस्म की टीबी से बचा जा सकता है।

टीबी के इलाज के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार द्वारा संयुक्त प्रयास से डाट्स पद्धति द्वारा मुफ्त दवा वितरण का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत डॉक्टर/स्वास्थ्य कार्यकर्ता टीबी के मरीज को चिह्नित करते हैं और उसे स्वयं अपने द्वारा मुफ्त दवाइयाँ देते हैं, ताकि मरीज नियमित दवाइयाँ ले। यह दवाइयाँ सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों पर उपलब्ध हैं।

अज्ञानता, पुरानी मान्यताएँ, बढ़ती जनसंख्या, शहरों में झुग्गी झोपड़ियों का विस्तार और एड्स इस बीमारी को महामारी का रूप दे रहे हैं। आज जरूरत है इसके रोकथाम की। बच्चों में टीबी एक सामान्य बीमारी है। पर्याप्त और नियमित इलाज से यह बीमारी शत-प्रतिशत ठीक हो जाती है। इसे समझें और मुकाबला करें।