मालिश करने के नियम

- खुले, हवादार और साफ स्थान पर जमीन पर दरी या चटाई बिछाकर बैठ जाएं और बैठकर मालिश करें। चलते-फिरते या अन्य काम करते-करते नहीं। इस वक्त बातें न करें और ध्यान को कहीं भी जाने न दें, एकाग्र चित्त रहकर मालिश करें।

- मालिश करने के लिए हाथ को नीचे से ऊपर को चलाएं, लेकिन ऐसी सावधानी से हाथ चलाएं कि त्वचा के बाल (रोम) टूटें या उखड़ें नहीं। नीचे से ऊपर को हाथ चलाने का तत्पर्य है रक्त का प्रवाह हृदय की तरफ होने में सहयोग करना।

- मालिश की शुरुआत पैरों से करें। मालिश धीरे-धीरे, हल्के दबाव के साथ करें। कम से कम 20-25 मिनट और ज्यादा से ज्यादा 45 मिनट तक मालिश की जानी चाहिए। इसके बाद थोड़ा विश्राम कर स्नान कर लेना चाहिए।

- जिस तैल से मालिश करें, उस तैल को शीशी में भरकर 6-7 घण्टे तक नित्य धूप में रखना चाहिए। तैल की बोतल को जमीन पर नहीं, बल्कि धूप में एक पटिया रखकर इस पटिए पर बोतल रखें और अन्दर लाएं, तब अन्दर भी पटिए पर ही रखें।

- शीतकाल में अधिक ठण्ड और ठण्डी हवा से तथा गर्मी के दिनों में अधिक गर्मी और धूप से बच कर मालिश करना चाहिए। मालिश करते समय पेट खाली होना चाहिए, इसलिए प्रातः शौच निवृत्ति के बाद और स्नान से पहले मालिश करना उत्तम होता है।

- मालिश स्वयं करें या किसी से कराएं पर एक जैसे ढंग से मालिश होनी चाहिए। मालिश के बाद शवासन में लेटकर विश्राम करें। शरीर ठण्डा होने पर स्नान करें फिर मोटे तौलिए या कपड़े से खूब रगड़-रगड़कर शरीर पोंछ लें, ताकि तैल साफ हो जाए।

- मालिश इतनी गुणकारी और हितकारी होती है, फिर भी कुछ स्थितियों में मालिश करना वर्जित किया गया है। बुखार, कब्ज, पेट भरा होना, आम दोष, उपवास, उलटी-दस्त, बहुत ज्यादा थकावट, पूरी रात का जागरण किया हो और 'वर्जोऽभ्यङ कफ ग्रस्त कृत संशुद्धय जीर्णिभिः' (अष्टांग हृदय) के अनुसार जब कफ प्रकोप हो, उल्टी-दस्त करके शोधन-कर्म किया हो और जब अजीर्ण हो तब मालिश नहीं करना चाहिए।

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