Expert Advice : जानिए प्लाज्मा थैरेपी के बारे में

इस वक्त पूरा देश कोरोना से परेशान है। कोविड-19 विश्व में कहर बरपा रहा है। कोरोना से बचने के लिए लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंसिंग जैसे तरीकों को अपनाया जा रहा है ताकि इस वायरस से छुटकारा पाया जा सके। वहीं वैज्ञानिक और शोधकर्ता कोरोना के इलाज के लिए दवाएं बनाने में लगे हुए हैं और अलग-अलग तरीकों से कोरोना संक्रमण से निजात पाने के लिए अपना काम कर रहे हैं।
 
इन्हीं सबके बीच प्लाज्मा थैरेपी के जरिए एक उम्मीद नजर आ रही है। विदेशों के बाद अब भारत इस तकनीक से कोरोना को मात देने के लिए अपने प्रयास करने में जुट गया है जिसे कंवलसेंट प्लाज्मा थैरेपी (convalescent plasma therapy) कहा जाता है।
 
लेकिन प्लाज्मा थैरेपी को लेकर इस वक्त कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। यह सिर्फ एक प्रयास है ताकि इस संक्रमण से छुटकारा पाया जा सके। लेकिन अभी इस बात की पुष्टि नहीं है कि इसके माध्यम से कोरोना का इलाज हो सकता है।
 
प्लाज्मा थैरेपी आखिर क्या है? इसके फायदे और नुकसान क्या हो सकते हैं? इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमने बात की डॉक्टर आलोक वर्मा (MBBS MD Medicine) से। आइए जानते हैं एक्सपर्ट एड्वाइस।


 
डॉक्टर आलोक वर्मा का कहना है कि इस वक्त संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी से पीड़ित है। सारी दुनिया के चिकित्सा विशेषज्ञ और वैज्ञानिक इसके प्रभाव से स्तब्ध हैं। आज तक वुहान से लेकर इटली, स्पेन, ब्रिटेन, अमेरिका और भारत में भी इसके प्रभाव का इलाज नहीं खोज पाए हैं।
 
आज सारी दुनिया के चिकित्सा जगत में इस महामारी से निजात पाने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन कुछ भी कारगर इलाज नहीं पता चल पाया है। इस बीच कुछ मरीजों में इस वायरस का प्रभाव इतना ज्यादा देखा गया है जिससे उन्होंने अपनी जान भी गंवा दी है।
 
वैज्ञानिकों की नजर मरीजों पर और कोरोना वायरस के प्रभाव पर लगी हुई है। ऐसे में ऐसा देखा गया है कि पिछले 4 महीनों में जो मरीज कोरोना से ठीक हुए हैं, उनके रक्त में कोरोना की एंटीबॉडी बन जाती है और ये एंटीबॉडी व्यक्ति को दोबारा इंफेक्शन से भी बचाती है। यदि हम उस मरीज के रक्त से प्लाज्मा अलग करके जिसमें एंटीबॉडी होती है, उस मरीज के शरीर में डालें, जो संक्रमित है तो उसके लिए प्रभावकारी साबित हो सकते हैं।
 
यहां यह समझना जरूरी है कि कुछ मरीजों में प्लाज्मा थैरेपी से अच्छे परिणाम मिले हैं। लेकिन अभी तक इसे कारगर या प्रभावी ट्रीटमेंट नहीं कहा जा सकता है अर्थात प्लाज्मा थैरेपी से ही कोरोना का इलाज संभव है, ये अभी कहा नहीं जा सकता हैं, क्योंकि अभी इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है।
 
इसके कई कारण हैं और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि कोरोना वायरस से जो इंफेक्शन फैला है, उसकी दो स्ट्रेन हैं और ये अलग-अलग स्ट्रेन अलग-अलग मरीजों में अलग तरह से प्रभाव करता है और अलग-अलग उसी स्ट्रेन की एंटीबॉडी को पैदा करता है। किसी दूसरे मरीज में प्लाज्मा देने से पहले यह महत्वपूर्ण है कि उस मरीज का या प्लाज्मा का जो डोनर है, दोनों में कौन से वायरस की स्ट्रेन से इंफेक्शन हुआ है।
 
दूसरा कारण है डोनर के प्लाज्मा में पर्याप्त एंटीबॉडी टाइटर है या नहीं, यह भी बहुत जरूरी है, जैसे उसका टाइटर बहुत कम है तो जिस मरीज को हम ये प्लाज्मा दे रहे, वो प्रभावकारी नहीं होगा।
 
तीसरा कारण है मरीज जिसको प्लाज्मा दिया जाना है उसे कोरोना का कितना प्रभाव है कि उसके शरीर में अंग जो फैल हो रहे हैं या उसका लक्षण है मरीज़ को कोरोना वाइरस की कोनसी स्ट्रेन से संक्रमण हुआ है यह जानकारी आवश्यक हैं। मरीज़ के अंगों पर कोरोना का कितना प्रभाव है और यह प्रभाव परिवर्तनीय reversible है या अपरिवर्तनीय irreversible अवस्था में है। ये जानकारी आवश्यक है। 
 
मरीज को प्लाज्मा देते समय भी transfusion रीऐक्शन  का खतरा होता है।
 
साथ ही साथ हमें यह देखने की भी जरूरत है कि मरीज के वायरस का लोड कितना है, क्योंकि इसके हिसाब से ही प्लाज्मा या एंटीबॉडी का डोज तय किया जाता है जिससे कि वायरस लोड को कम किया जा सके और मरीज की जान को बचाया जा सके।
 
मरीज को प्लाज्मा के साथ किसी और तरह की एंटीजन और एंटीबॉडी का खतरा बन सकता है, जैसे हम जिस भी मरीज को डोनर का प्लाज्मा दे रहे हैं तो कोरोना वायरस की एंटीबॉडी तो उसे मिलेगी ही लेकिन डोनर की और भी एंटीजन या एंटीबॉडी जाने का खतरा भी हो सकता है जिससे मरीज को नुकसान हो सकता है इसलिए अभी प्लाज्मा थैरेपी को सिर्फ ट्रॉयल के रूप में ही इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
 
हां, यह जरूर है कि कुछ मरीजों में इसके अच्छे परिणाम मिले हैं। लेकिन इसकी पुष्टि नहीं है कि ये प्लाज्मा देने के कारण ही व्यक्ति ठीक हुआ है या खुद के अंदर एंटीबॉडी के बनने पर वह मरीज ठीक हुआ है। इसलिए अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि प्लाज्मा थैरेपी से कोरोना का इलाज संभव है लेकिन वैज्ञानिक और चिकित्सकों के पास जब तक कुछ नहीं है, तब तक मरीजों की जान बचाने के लिए जो भी उपाय ठीक लगता है, वो किए जा रहे हैं लेकिन इस वक्त कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
 
 
 

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