त्योहारों को नहीं बनाएं नशा करने का बहाना !

वैसे तो त्योहार समाज में खुशियां मनाने ,गिले शिकवे मिटाने के प्रतीक हैं लेकिन हमारे देश में त्योहारों के आसपास नशे के उपयोग में वृद्धि देखी जाती है। कहीं न कहीं त्योहारों में नशे के उपयोग को सामाजिक स्वीकार्यता मिली हुई है। अस्पतालों में बहुत से लोग नशे के उपयोग के कारण इमरजेंसी डिपार्ट्मन्ट में लाए जाते हैं। कुछ तो नशे के सीधे प्रभाव के चलते और बहुत से लोग सड़क दुर्घटना के कारण समस्याओं से घिर जाते हैं। समाज में नशे के उपयोग को लेकर उसकी सुरक्षित सीमा के बारे में सबकी अपनी परिभाषाएं हैं।इस आलेख के माध्यम से मैं आपको नशे की लत के मनोवैज्ञानिक पहलुओं कि जानकारी दूंगा।

नशे की लत एक मानसिक विकार है जिसमें नशे के लगातार उपयोग की वजह से शारीरिक और मानसिक अवस्था में गंभीर परिवर्तन होते हैं। जिसमें व्यक्ति स्वयं से नशे की मात्रा को कम करने या बंद करने में अक्षम हो जाता है। भारत में आमतौर पर तम्बाकू ,शराब, गांजा, चरस, अफीम, थिनर, कुछ दर्द निवारक एवं घबराहट हेतु ली जाने वाली दवाओं का उपयोग नशे के लिए किया जाता हैं। कई गैरकानूनी नशों की अलग अलग स्थानों पर बिक्री विभिन्न नामों से की जाती है (माल,म्याऊ म्याऊ,बूम इत्यादि)।

नशे का उपयोग आमतौर पर लोग प्रयोग या समूहों में अपनी स्वीकार्यता के लिए शुरू करते हैं और धीरे-धीरे हमारे ब्रेन में ऐसे परिवर्तन आते हैं कि हमें अपने जीवन में किसी और क्रिया (मनपसंद खाना,सेक्स,उपलब्धियों) से भी आनंद समाप्त होता जाता है। और हम अपनी नियमित दिनचर्या हेतु भी नशे पर निर्भर होते जाते हैं। हालांकि आनुवंशिकता की भी भूमिका अहम मानी गयी है।

हम बड़ी आसानी से समझ सकते हैं की कब हम या हमारे परिजन नशे की लत के शिकार हो चुके हैं। शोध आधारित लक्षण इस प्रकार हैं- जब अपने शरीर में हो रहे नुकसानों की जानकारी के बाद भी नशे का उपयोग हमारे नियंत्रण से बाहर रहे, नशा छोड़ने पर हमारे शरीर और व्यवहार में गंभीर परिवर्तन(विथद्रावल लक्षण-हाथ पैर में कम्पन,रक्तचाप में उतार चढाव,अनिद्रा, गुस्सा, चिडचिडापन, हृदयगति में परिवर्तन, मिर्गी के झटके इत्यादि) दिखाई देने लगे, बार-बार तलब उठना, अपना कार्य प्रभावित होने लगना, रिश्तों में खराबी आने लगना, महत्वपूर्ण अंगों जैसे लीवर, किडनी हृदय मस्तिष्क पर प्रभाव दिखने लगना, समान उन्माद के लिए नशे की मात्रा का बढ़ना इत्यादि।

ऊपर बताए हुए लक्षण होने पर आपको मनोचिकित्सक से मिलने की सलाह दी जाती है। यह एक टीम वर्क होता है। मनोचिकित्सक आपकी शारीरिक एवं मानसिक अवस्था का पूर्ण परीक्षण करता है, लगभग प्रत्येक केस में कई अन्य मानसिक बीमारियाँ भी पाई जाती हैं। जैसे कि डिप्रेशन, एंग्जायटी डिसऑर्डर, बाइपोलर डिसऑर्डर, पर्सनालिटी डिसऑर्डर। सम्पूर्ण आंकलन के पश्चात शुरुआती दौर में दवाओं के माध्यम से डीटॉक्सीफिकेशन किया जाता है, ताकि विथद्रावल लक्षण कम से कम रहें। उस चरण को पूरा करने के पश्चात एंटी क्रेविंग दवाएं भी दी जाती हैं, ताकि तलब को भी कम किया जा सके। साथ ही साथ अन्य मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों होने पर उनका भी उपचार समान्तर रूप से किया जाता है। नशे की लत से बचने में अधिकांश मरीज़ अपनी जिम्मेदारियों को लेकर अस्वीकार्यता में रहते हैं। काउन्सलिंग एवं साइकोथेरेपी किसीभी नशे की लत के इलाज़ का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसमे व्यक्ति के विचारों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उपयुक्त थेरेपी दी जाती है। साथ ही साथ मरीज़ को स्वस्थ दिनचर्या अपनाने का महत्व समझाया जाता है।

न केवल त्योहार बल्कि नशे के सेवन से हमेशा बचें। नशे के उपयोग से ध्यान रखें कि लत के शिकार होने का आधार आपका थोड़ी सी मात्रा की शुरुआत ही है। नशे का उन्मूलन हम सबकी जिम्मेदारी है। सरकार समाज परिवार व्यक्ति सबको मिलकर काम करना होगा। केवल सरकारों पर दोषारोपण करते रहने से काम नहीं चलेगा, अपने शरीर और परिवार की जिम्मेदारी आपको भी लेनी होगी।

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