अगर तुलसीदास की रामायण पढ़ें तो रावण अपराधी था, वहीं महाभारत में दुर्योधन अपराधी था, मदर इंडिया में लाला यानी कन्हैयालाल भी अपराधी था। अपराध अगर कुछ नहीं है तो वो कॉमेडी है। अपराध हर जगह है, हर तरह का अपराध है।
यह बात मनोज राजन त्रिपाठी ने इस सत्र के दौरान कही। यह बात सही है कि अपराध बिकता है और जब तक बिकता रहेगा जब तक आप उसे खरीदते रहेंगे। मंच पर मौजूद लेखक संजीव पालीवाल ने कहा कि जब हम अपना आपा खो देते हैं, विवेक खो देते हैं तो अपराध घटता है।
उन्होंने कहा, मैं ज्ञान के लिए अपराध नहीं लिखता, मैं मनोरंजन के लिए लिखता हूँ। मैं वादा करता हूँ कि आपको मेरी किताब में फ़िल्म का आनंद आएगा।
- जिसके पास चरित्र नहीं वो पत्रकार नहीं।
* हर पत्रकार की ज़िंदगी में, उसके करियर में कहानियां और चरित्र होना चाहिए, अगर किसी पत्रकार के पास कैरेक्टर नहीं है तो वो पत्रकार नहीं है। मैंने अपने 30 साल के पत्रकारिता करियर में कई चरित्र एकत्र किए। मैं थ्रिल ही लिख रहा था, लेकिन मैंने अपनी अपराध कथा में सटायर भी डाला।
दूसरे सेशन में कविता पाठ किया गया, इसमें आशुतोष दुबे, पंकज राग, उत्पल बनर्जी, राजीव कुमार, प्रशांत चौबे ने कविता पाठ किया। प्रस्तोता थीं संगीता भरुका।