मनुष्य का जीवन व्याधि और उपाधि इन दो दिशाओं में चलता है। व्याधि का तात्पर्य शारीरिक कष्ट और उपाधि का भावनात्मक कष्ट है और यह तीनों कभी-कभी एक साथ होते हैं। इन्हीं का तोड़ है भावातीत ध्यान।
ध्यान की प्रक्रिया
सबसे पहले शांत चित्त होकर शरीर ढीला करके बिल्कुल सीधे होकर बैठें। अपनी एक मुट्ठी में कोई पुष्प ले लें। जिस भगवान में आपकी आस्था है, उस परम प्रभु का जाप करते रहें। मंत्र का उच्चारण आप अपनी क्षमता के अनुसार करें।
जिस नाम का उच्चारण पहली बार किया था उसे याद रखें। हर बार उसी मंत्र का जाप करें। किसी-किसी को शुरू में अहसास होगा कि उनका सिर घूम रहा है ऐसा पहली बार होता है।
आंख बंद करते ही आपके मन में कई प्रकार के विचारों का सैलाब उमड़ेगा। उन विचारों को रोके नहीं, उन्हें आने दें। धीरे-धीरे आपका मन अपने आप शांत हो जाएगा। मन की इस अवस्था को ही ध्यान कहते हैं।
घर के कामों से थोड़ा समय निकालकर पहली बार में एक घंटे बैठना मुश्किल है तो आप पहले 15 मिनट बैठें। धीरे-धीरे समय बढ़ाते चले जाएं। जिस कमरे में आप ध्यान करने बैठें, वहां कोई दीप प्रज्वलित करें।
आइए जानें किन विकारों में उपयोगी है ध्यान
मन अशांत रहने पर उसके निष्क्रिय पड़े हुए भागों को उपयोग में लाने योग्य बनाता है।
अनुभव की क्षमता को सूक्ष्म करने की एक प्रक्रिया है ध्यान।
यदि आपको भूलने की आदत है तो ध्यान आपके लिए बहुत उपयोगी है।
गुस्सैल प्रवृत्ति के लोगों का मन शांत करने में कारगर है भावातीत ध्यान।
निर्णय न ले पाने वाले भी इसे अपनी जिंदगी में शामिल कर सकते हैं।
हृदयरोग की रोकथाम के लिए उत्तम औषधि के समान है।
मन की चंचलता को नियंत्रित करता है।
दीर्घायु बनाने में इसकी अहम उपयोगिता है।
शांति, सामर्थ्य, संतोष, शांति, विद्वत्ता और सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है भावातीत ध्यान।
चाहें तो ध्यान के समय कुछ फूल आस-पास रखें, कोई सुगंधित वस्तु का छिड़काव कर दें, अगरबत्ती जला दें।
रात्रि के भोजन से पहले ही ध्यान के लिए बैठें। प्रातःकाल सूर्योदय से पहले ध्यान करें।
ढीले वस्त्र पहनकर ध्यान करें।
महिलाएं यदि चाहें तो भावातीत ध्यान किसी शिक्षक के द्वारा भी सीख सकती हैं। चाहें तो मेडिटेशन सेंटर में भी आप इसे सीख सकती हैं।