fasting and heart disease: आजकल फिटनेस की दुनिया में इंटरमिटेंट फास्टिंग एक ट्रेंड बन चुका है। कई लोग वजन घटाने, मेटाबॉलिज़्म सुधारने और सेहतमंद रहने के लिए इस डाइट पैटर्न को अपनाते हैं। लेकिन हाल ही में आई कुछ रिसर्च ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या इंटरमिटेंट फास्टिंग वाकई सभी के लिए सुरक्षित है? रिपोर्ट्स के अनुसार, लंबे समय तक इंटरमिटेंट फास्टिंग करने वालों में हार्ट डिजीज का खतरा लगभग दोगुना हो सकता है। यह चौंकाने वाली बात है क्योंकि ज्यादातर लोग इसे स्वस्थ जीवनशैली का हिस्सा मानते हैं। ऐसे में जरूरी है कि हम समझें कि इंटरमिटेंट फास्टिंग किस तरह हृदय को प्रभावित कर सकती है और हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
इंटरमिटेंट फास्टिंग क्या है?
इंटरमिटेंट फास्टिंग एक डाइट पैटर्न है जिसमें दिनभर खाने का समय सीमित कर दिया जाता है। सबसे लोकप्रिय पैटर्न है 16:8 रूल, यानी 16 घंटे तक कुछ नहीं खाना और सिर्फ 8 घंटे की विंडो में भोजन करना। कुछ लोग इसे 14:10, 18:6 या यहां तक कि 20:4 तक भी अपनाते हैं। माना जाता है कि इससे शरीर को डिटॉक्स करने, इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ाने और वजन कम करने में मदद मिलती है। लेकिन जब खाने का समय लगातार सीमित हो जाता है, तो इसका असर शरीर की पोषण ज़रूरतों और हार्ट हेल्थ पर भी पड़ सकता है।
रिसर्च क्या कहती है?
हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि जो लोग रोज़ाना 8 घंटे या उससे कम समय में खाना खाते हैं, उनमें हृदय संबंधी रोगों (जैसे हार्ट अटैक और स्ट्रोक) का खतरा दोगुना हो सकता है। दरअसल, जब शरीर को लंबे समय तक भोजन नहीं मिलता, तो यह ऊर्जा पाने के लिए फैट ब्रेकडाउन करना शुरू करता है। शुरू में यह प्रोसेस अच्छा लगता है, लेकिन लंबे समय में इससे शरीर पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है और ब्लड लिपिड लेवल बिगड़ सकता है। यही असंतुलन हृदय रोगों का कारण बन सकता है।
हृदय पर कैसे पड़ता है असर?
कोलेस्ट्रॉल का असंतुलन- लगातार फास्टिंग से खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) बढ़ सकता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL) का स्तर कम हो सकता है।
ब्लड प्रेशर बढ़ना- लंबे समय तक भूखे रहने से स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल बढ़ता है, जो ब्लड प्रेशर को असंतुलित कर सकता है।
इंफ्लेमेशन का खतरा- फास्टिंग के दौरान शरीर में सूजन (inflammation) की स्थिति बन सकती है, जो हार्ट अटैक का रिस्क फैक्टर है।
हार्मोनल इम्बैलेंस- महिलाओं और बुजुर्गों में लंबे फास्टिंग विंडो हार्मोन को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे हृदय रोग का खतरा और भी बढ़ जाता है।
किन लोगों को ज्यादा खतरा है?
हर किसी पर इंटरमिटेंट फास्टिंग का असर एक जैसा नहीं होता। कुछ लोग इसे आसानी से अपना लेते हैं, जबकि कुछ पर इसका नकारात्मक असर ज्यादा दिखता है।
हार्ट पेशेंट्स- जिन्हें पहले से ही हृदय रोग हैं, उन्हें इंटरमिटेंट फास्टिंग से परहेज़ करना चाहिए।
डायबिटीज पेशेंट्स- लंबे समय तक बिना भोजन रहने से शुगर लेवल अचानक गिर सकता है, जिससे हृदय पर असर पड़ता है।
गर्भवती महिलाएं- इस दौरान पोषण की कमी सीधा मां और बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
बुजुर्ग- कमजोर इम्यून सिस्टम और हड्डियों पर इसका दुष्प्रभाव अधिक पड़ता है।
सुरक्षित रहने के लिए क्या करें?
अगर आप इंटरमिटेंट फास्टिंग करना चाहते हैं तो इसे बिना सोच-समझे और लंबे समय तक न अपनाएं।
डॉक्टर या न्यूट्रिशनिस्ट से सलाह लें- अपनी सेहत और मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर ही इस डाइट को अपनाएँ।
संतुलित भोजन लें- फास्टिंग खत्म करने के बाद ज्यादा ऑयली, प्रोसेस्ड या हैवी फूड न खाएँ।
हाइड्रेशन का ध्यान रखें- पानी और हर्बल ड्रिंक्स से शरीर को हाइड्रेटेड रखें।
छोटे बदलाव करें- 16:8 पैटर्न सभी पर फिट नहीं बैठता, आप 12:12 या 14:10 जैसे आसान विकल्प चुन सकते हैं।
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