कैंसर संबंधी अनुसंधान के लिए तीन वैज्ञानिकों को सीडीआरआई पुरस्कार

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020 (12:26 IST)
नई दिल्ली, भारत में औषधि अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने में उत्कृष्ट योगदान और कैंसर से संबंधित अनसुलझी गुत्थी सुलझाने के लिए इस वर्ष तीन युवा वैज्ञानिकों को सीडीआरआई पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है।

इन वैज्ञानिकों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के बायोलॉजिकल साइंसेज एवं बायो-इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. बुशरा अतीक, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर में बायोसाइंस और बायो-इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सुराजित घोष और जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलूरू में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रवि मंजीठया शामिल हैं।

सीडीआरआई पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक डॉ सुराजित घोष, डॉ रवि मंजीठिया और डॉ बुशरा अतीक (बाएं से दाएं) औषधि अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने और इस क्षेत्र में शोधकर्ताओं के उत्कृष्ट योगदान को मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से सीडीआरआई पुरस्कार हर साल 45 वर्ष से कम आयु के भारतीय युवा वैज्ञानिकों को प्रदान किए जाते हैं। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) की ओर से दिए जाने वाले इन पुरस्कारों की शुरुआत वर्ष 2004 में की गई थी।

रासायनिक विज्ञान और जीवन विज्ञान के क्षेत्र में दो अलग-अलग पुरस्कार दिए जाते हैं। प्रत्येक पुरस्कार में बीस हजार रुपये का नकद पुरस्कार और एक प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।

इस वर्ष वेलकम ट्रस्ट / डीबीटी इंडिया एलायंस की वरिष्ठ फेलो डॉ बुशरा अतीक को प्रोस्टेट कैंसर के चिकित्सीय समाधान को नई दिशा देने के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया है। ऑनलाइन रूप से आयोजित पुरस्कार समारोह के दौरान अपने शोध कार्य से जुड़े अनुभव साझा करते हुए उन्होंने एक पेन्क्रियाटिक (अग्नाशयी) स्रावी ट्रिप्सिन इन्हिबिटर (PSTI), जिसे सेरिन प्रोटीएज इन्हिबिटर काज़ल-टाइप1 (SPINK1) भी कहते हैं, की क्रियाविधि के बारे में बताया।

उनका शोध, एंड्रोजन डिप्रेशन थेरेपी (ADT) के पश्चात होने वाले विरोधाभासी नैदानिक परिणामों की व्याख्या करता है। डॉ. बुशरा ने अपने शोध में बताया है कि प्रोस्टेट कैंसर के रोगियों को दी जाने वाली एंटी एंड्रोजन दवाओं को लंबे समय तक दिया जाना हानिकारक हो सकता है। उल्लेखनीय है कि डॉ बुशरा अतीक को इस वर्ष के प्रतिष्ठित शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार के लिए भी चुना गया है।

डॉ सुराजित घोष को सीडीआरआई पुरस्कार सेल पेनेट्रेटिंग पेप्टाइड या कोशिका भेदक पेप्टाइड्स (सीपीपी) की कैंसर-रोधी औषधि के रूप में भूमिका की खोज के लिए दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि सीपीपी का औषधि के रूप में जबरदस्त प्रभाव होता है। अपने व्यापक शोध कार्य के माध्यम से उन्होने सेल पेनेट्रेशन (कोशिका भेदन) में दो मुख्य अमीनो एसिड - आर्जिनिन एवं ट्रिप्टोफैन की भूमिका के बारे में बताया है।

डॉ. घोष ने बताया है कि किस प्रकार ट्रिप्टोफैन की स्थानिक तैनाती कोशिका भेदन एवं केंद्रकीय स्थानीयकरण (न्यूक्लियर लोकलाइजेशन) को नियंत्रित करती है। इसके साथ ही, यह कोशिका भेदन एवं केंद्रकीय स्थानीयकरण की उत्कृष्ट क्षमता वाले औषधि के रूप में अति महत्वपूर्ण एवं छोटे आकार के नॉन टॉक्सिक टेट्रापेप्टाइड विकसित करने में सक्षम बनाता है। उनका शोध कार्य ट्रिप्टोफैन के स्थानिक महत्व के बारे में प्रमुख मौलिक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है तथा अगली पीढ़ी के सीपीपी एवं डीएनए के मेजर ग्रूव में बंधने वाली विशिष्ट कैंसर-रोधी दवाओं के विकास हेतु नये आयाम प्रस्तुत करता है।

डॉ रवि मंजीठया को चिकित्सीय क्षमता वाले ऑटोफेजी-मॉड्यूलेटिंग अणुओं की रासायनिक आनुवंशिकी-आधारित पहचान के लिए किए गए उनके उत्कृष्ट शोध कार्य के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया है। डॉ मंजीठया ने ऑटोफेजी के बारे में बताते हुए कहा कि यह एक कोशिकीय अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रक्रिया है, जो ऑर्गेनेल, सेलुलर और ऑर्गेज्मल होमोस्टैसिस को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। इस प्रक्रिया के संतुलन बिगड़ने पर स्नायुशोथ, इंट्रासेलुलर संक्रमण और कैंसर सहित अनेक रोग एवं विकार शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं।

इस अवसर पर आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में पुरस्कार विजेताओं ने अपने शोध कार्य के बारे में विस्तार से बताया। सीडीआरआई के निदेशक प्रोफेसर तपस कुंडु और कार्यक्रम में शामिल संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. वी.पी. कंबोज ने विजेताओं को बधाई दी है और भविष्य में औषधि अनुसंधान को नई दिशा देने के लिए आह्वान किया।

वर्ष 2004 के बाद से अब तक कुल 34 वैज्ञानिकों (रासायनिक विज्ञान में 17 उत्कृष्ट वैज्ञानिक और जैविक विज्ञान में 17 उत्कृष्ट वैज्ञानिक) को भारत में औषधि अनुसंधान एवं विकास में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुका है।

सीडीआरआई पुरस्कार विजेताओं में कई नाम ऐसे हैं, जिन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीय नोबेल पुरस्कार के समान मान्यता प्राप्त शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार भी मिल चुका है। इन वैज्ञानिकों में डॉ. शांतनु चौधरी, डॉ. सतीश सी. राघवन, डॉ. बालासुब्रमण्यम गोपाल, डॉ. सुवेंद्रनाथ भट्टाचार्य, डॉ. डी. श्रीनिवास रेड्डी, डॉ. सौविक मैती, डॉ. गोविंदसामी मुगेश, डॉ. गंगाधर जे. संजयन, प्रोफेसर संदीप वर्मा, प्रोफेसर शांतनु भट्टाचार्य और प्रोफेसर उदय मैत्रा शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)

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