तो इसलिए गिर रहा है आपका स्वास्थ्य

बुधवार, 6 मई 2015 (11:25 IST)
आजकल लोग थोड़ा सा काम करने के बाद ही थकान महसूस करने लगते हैं, अगर थोड़ा मौसम खराब हुआ सर्दी,  जुकाम होना तो जैसे आम हो गया है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण क्या है?
 
 
नए डेटा के मुताबिक पिछले दो दशकों में जिस तरह से हमारा खान-पान बदला है उसका ही ये असर है। खान-पान के बदलने से एक औसत व्यक्ति के खान-पान में 6 से 10 प्रतिशत तक की प्रोटीन की कमी आई है।

इस डेटा में यह भी बताया गया है कि पिछले दो दशकों से शहरों में रहने वाले 80 प्रतिशत लोग और गांवों में रहने 70 प्रतिशत लोगों को सरकार के द्वारा नामित 2, 400 केसीएल जो हर दिन मिलना चाहिए का पोषण नहीं मिल रहा है।       

फिकी के द्वारा निकाले गए तुलनात्मक अनुमानों के मुताबिक, शहरी क्षेत्रों में लोगों का पोषक आहार लेने का प्रतिशत  बहुत कम हैं। शहरों में रहने वाले अमीर लोग हर दिन 2,518 केसीएल लेते हैं वहीं गरीब लोगों को 1,679 केसीएल से भी कम पोषण मिल पाता है।    

डाटा के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में 1993-94 में प्रति व्यक्ति प्रोटीन की दैनिक खपत 60.2 ग्राम  थी जो 2011-12 में घटकर 56.5 ग्राम हो गई। वहीं शहरी क्षेत्रों में 1993-94 के दौरान यही खपत 57.2 ग्राम थी जो 2011-12 में 55.7 ग्राम हो गई।  


विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह पोषित भोजन के स्तर में गिरावट के कई कारण हो सकते हैं। इसका सबसे पहला कारण  हमारी खाने संबंधी आदतों का बदलना हैं।

अब प्राकृतिक पदार्थ जो हम खाते हैं कि गुणवत्ता में भी परिवर्तन आया है  जिसकी वजह से एका-एक जो हमारे शरीर को प्रोटीन मिलना चाहिए वो हमें नहीं मिल पा रहा है और हम नई-नई  बीमारियों का शिकार बन रहे हैं।     

डेटा में यह भी बताया गया है कि 1993-94 में हम भोजन में फल-सब्जियां, दूध-अंडा, मीट-मछली को 9 प्रतिशत तक शामिल करते थे जो 2011-12 में 9.6 प्रतिशत हो गया है।    

हम रोज के खाने में तेल के पदार्थों को ज्यादा शामिल करने लगे हैं, जो पहले ग्रामीण क्षेत्रों में 31 ग्राम था और अब  42 ग्राम हो गया है। वहीं शहरी क्षेत्रों में यह 42 ग्राम से बढ़कर 52.5 ग्राम हो गया है।    

इसमें आगे बताया गया है कि पिछले दशकों में हमने नए तरह के खाद्य पदार्थ जैसे ठंडे व गरम पेय पदार्थ शामिल होने के साथ-साथ चिप्स, बिस्किट, स्नैक व और तरह के फास्ट फूड पर हमारी निर्भरता ज्यादा बढ़ी है। 1993-94 में ग्रामीण क्षेत्रो में इसका प्रतिशत मात्र 2 प्रतिशत था जो अब 7 प्रतिशत हो गया है। वहीं  शहरी क्षेत्रों में इसका प्रतिशत पहले 5.6 प्रतिशत था जो अब 9 प्रतिशत हो गया है।       

इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के द्वारा जारी की गई नई रिपोर्ट के मुताबिक, बिना पोषण के भोजन के अलावा लोगों की गरीबीं, हर साल फसलों की उत्पादकता कम होना और नए सांस्कृतिक कारक भी सही पोषण मिलने के राह में एक रोड़ा है। साफ पानी का आभाव है, साफ-सुथरे वातावरण का आभाव, इसके कारण भी लोगों के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।

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