सफल लेखक बीज रूप में प्राप्त छोटे से सूत्र से, अपनी कल्पना-लोक के आधार पर ऐसा वृहद संसार रच लेता है, जो वास्तविकता का आभास देता है। ऐसे ही सूत्रों को आधार बना, मीराकांत ने तीन लघु नाटकों की रचना की है। यह नाट्य-त्रयी 'कंधे पर बैठा शाप' शीर्षक से प्रकाशित हुई है।
पुस्तक के प्रथम नाटक का शीर्षक 'कंधे पर बैठा शाप' ही है। विश्व के नाट्य परिदृश्य पर अपनी विराट छवि बनाने वाले महाकवि कालिदास के रचना संसार से प्रभावित लोग, उनके दुखद अंत से परिचित नहीं हैं।
कहा जाता है कि उज्जयिनी निवासी कालिदास की मृत्यु श्रीलंका मेंहुई थी। लंका में उनके अंत की कथा, जनश्रुति के रूप में प्रचलित है। लोग इसे इतिहास से भी जोड़ते हैं। यह भी कहा जाता है कि कालिदास की समाधि दक्षिणी लंका में किरन्दी नदी तथा समुद्र के संगम पर आज भी मौजूद है।
दरअसल महाकवि की मृत्यु का हादसा लंका के राजा कुमारदास से जुड़ा है, जो स्वयं भी अच्छे कवि थे और कालिदास से प्रभावित थे। कुमारदास सिंहलद्वीप (लंका) की एक धनाढ्य गणिका कामिनी से प्रेम करते थे। अपने एक प्रणय-प्रसंग के दौरान, कुमारदास द्वारा कविता की एक पंक्ति कामिनी को देकर, यह वचन दिया जाता है कि यदि वह उसे पूरा कर देती है, तो राजा उससे विवाह कर लेंगे।
इसी बीच कालिदास, कुमारदास के आमंत्रण पर सिंहलद्वीप पहुँच जाते हैं और उन्हें चकित कर देने के उद्देश्य से सूचित नहीं करते। संयोगवश कालिदास उस गणिका के घर जा पहुँचते हैं। कविता की अधूरी पंक्ति देख, जब कालिदास उसे पूर्ण कर देते हैं और इस भय से कि कहीं कुमारदास को यह जानकारी न मिल जाए, कामिनी विष पिलाकर कालिदास की हत्या कर देती है।
कुमारदास को जब यह तथ्य ज्ञात होता है, तो वे भी आत्महत्या कर लेते हैं। कालिदास अपनी मृत्यु के समय यह मानते हैं कि विद्योत्तमा को पत्नी के स्थान पर गुरु मान लेने की गलती के कारण, उसका शाप ही उनकी मृत्यु का कारण बना।
संग्रह का दूसरा नाटक 'मेघप्रश्न' कालिदास रचित 'मेघदूतम' की समाप्ति के बाद की कथा है। 'मेघदूतम' की कथा के अनुसार यक्षराज कुबेर यक्ष को शाप देकर रामगिरि के वनों में भेजते हैं। अलकापुरी में यक्षिणी इस वियोग के आठ माह व्यतीत कर चुकी है। आषाढ़ के आनेपर यक्ष, अपनी वियोग-गाथा मेघ को दूत बनाकर भेजता है।
दूतरूपी मेघ यक्ष की वियोग-गाथा अपने करुण स्वर में यक्षिणी को सुनाता है। संयोग से कुबेर गाथा सुनकर द्रवित हो जाता है व यक्ष को शापमुक्त कर देता है। यक्ष तब यक्षिणी के पास अलकापुरी लौट आता है।
इस नाटक में मेघ का प्रश्न है कवि कालिदास यक्षिणी की पीड़ा की अनुभूति तो भली प्रकार से कर पाए, किंतु वे स्वयं मेघ थी, विद्युता से विरह की पीड़ा को व्यक्त क्यों नहीं कर पाए। मेघ कहता है- 'मेरी प्रिया विद्युता, निकट आते ही क्षणभर में ओझल हो जाती है...और मैं...उसके वियोग में दुखी हो, वर्षाकणों में धार-धार बह निकलता हूँ, आँसू बनकर। कुछ तो कहो महाकवि, कहाँ हो तुम?'
तीसरा नाटक 'काली बर्फ' कश्मीर से विस्थापित हुए लोगों की मानसिक वेदना को प्रकट करता है। आतंकवाद के शिकार हुए वौखलू परिवार को कश्मीर छोड़कर दिल्ली में स्थापित हो जाना पड़ता है। फिर भी उनके मन में आशा है, कि एक दिन स्थितियाँ सुधरेंगी और वेवापस कश्मीर लौट सकेंगे।
आतंकवाद ने उनके बेटे और बहू को उनसे छीन लिया है। फिर भी दिल में मातृभूमि के प्रति उनका प्यार बरकरार है। उनके मित्र डॉ. नसीरुद्दीन भी आतंकवाद के भय से दिल्ली आ गए थे, वे वापस कश्मीर लौटने की तैयारी कर रहे हैं। उनके परिवार को आमंत्रित करने वाला गुंडा मारा जा चुका है। लेकिन वौखलू परिवार के लिए फिलहाल राहत की कोई स्थिति नहीं है, फिर भी उसकी आशाएँ जीवित हैं।
संग्रह के तीनों नाटकों में लेखिका ने अपनी कल्पना से कथाओं को
कुमारदास को जब यह तथ्य ज्ञात होता है, तो वे भी आत्महत्या कर लेते हैं। कालिदास अपनी मृत्यु के समय यह मानते हैं कि विद्योत्तमा को पत्नी के स्थान पर गुरु मान लेने की गलती के कारण, उसका शाप ही उनकी मृत्यु का कारण बना।
जिस प्रकार विस्तार दिया है, वह पाठक दर्शक को बाँधने में सक्षम है। तीनों नाटकों में चरित्रों की बुनावट खूबसूरती से की गई है। नाटकों के अभाव से ग्रस्त हिन्दी नाट्य साहित्य में इन नाटकों का योगदान संतोष प्रदान करता है। नाटकों की समयावधि पूर्णकालिक होती, तो रंगकर्म को विशेष लाभ मिलता। पुस्तक : कंधे पर बैठा शाप। लेखक : मीराकांत। प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ, 18, इंस्टीट्यूशल एरिया, लोदी रोड, नई दिल्ली-3 मूल्य : रु. 130/-