एक स्‍वदेशी सुधारक की आत्‍मस्‍वीकृतियाँ

- राकेश श्रीवास्तव

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श्री यशवंत सिन्हा ने चंद्रशेखर तथा वाजपेयी सरकारों में वित्त मंत्री का दायित्व निभाया। वित्तीय सुधार के श्रीगणेश और उसे गति देने का श्रेय प्राय: नरसिम्हा राव सरकार को दिया जाता है। श्री सिन्हा ने चंद्रशेखर सरकार के रहते आर्थिक उदारीकरण का प्रयास किया। यह सर्वविदित है कि हमारे देश को अंतरराष्ट्रीय ऋण चुकाने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था। इसके तुरंत बाद वित्त व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता को स्वीकार किया गया व अपनाया गया तथा सुधारों का लाभ अब स्‍पष्‍ट ही है।

श्री यशवंत सिन्हा ने इस पुस्तक में उनकी वित्त मंत्री की भूमिका का वर्णन किया है और सुधार तथा स्वदेशी की अवधारणा के संबंध में अपना पक्ष रखा है। पुस्तक के तीन भाग हैं। पहले भाग में श्री सिन्हा ने बजट से संबंधित आर्थिक निर्णय व राजनीतिक घटनाओं का वर्णन किया है। इन पृष्ठों में इतिहास जीवंत दिखाई देता है। दूसरे भाग में अलग-अलग क्षेत्रों में इस दौरान (1998-2002) हुए नीतिगत परिर्वन तथा सुधार प्रक्रिया की जानकारी दी गई है। चंद पलों में कुछ वर्षों को समेटने के इस सफल प्रयास को तत्कालीन सुधार प्रक्रिया का सिंहावलोकन कहा जा सकता है। तीसरे भाग में भारतीय जनता पार्टी की स्वदेशी नीति के अंतर्गत आर्थिक सुधारों तथा वित्त मंत्री के कार्यकलापों के अन्य पहलुओं का उल्लेख है।

श्री सिन्हा के अनुसार 1991 तक आते-आते देश की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी थी। महँगाई तेजी से बढ़ रही थी तथा विदेशी मुद्रा का संकट सामने खड़ा था। इन परिस्थितयों में श्री सिन्हा ने सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश जैसे क्रांतिकारी कदम उठाने की ठानी, किन्तु राजनीतिक घटनाक्रमों ने उन्हें यह अवसर नहीं दिया। श्री सिन्हा को बीस टन सोना गिरवी रखने का दर्दनाक निर्णय लेना पड़ा।

25 मार्च, 1998 को वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री के रूप में उन्‍होंने अंतरिम बजट प्रस्तुत किया तथा देश की अर्थव्यवस्था में स्वदेशी की अवधारणा को शामिल करने का बीड़ा उठाया। बजट निर्माण की प्रक्रिया तथा इसकी गोपनीयता बनाए रखने का श्री सिन्हा ने दिलचस्प वर्णन किया है। संविधान का हवाला देते हुए वे बताते हैं कि संविधान में ‘बजट’ शब्द है ही नहीं। 11 मई, 1998 को भारत ने परमाणु परीक्षण किए। उससे पूरी दुनिया में तीखी प्रतिक्रिया हुई और वित्त मंत्री का काम और मुश्किल हो गया। 1998-99 के बजट भाषण में श्री सिन्हा ने भारत को मजबूत, संपन्न, स्वावलंबी तथा अन्य देशों की बराबरी में एक सक्षम देश बनाने का लक्ष्य रखा।

किसान क्रे‍डिट कार्ड, समग्र आवास योजना, द्वारा कृषि तथा गृह निर्माण को प्रोत्साहन दिया गया। विदेशी मुद्रा के संकट को बचाने के लिए रिसर्जेंट इंडिया ब्रांड तथा इंडिया मिलेनियम डिपॉजिट की घोषणा की गई है। 2000-01 में निर्वाचन के बाद पुन: स्थापित वाजपेयी सरकार के पहले बजट में वित्त मंत्री ने 7 से 8 प्रतिशत वृद्धि दर तथा एक दशक के भीतर गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा ‍तथा तद्‍नुसार आर्थिक रणनीति की घोषणा की‍। 2001 में श्री सिन्हा ने बजट घोषणाओं के क्रियान्वयन को संसद में प्रस्तुत कर एक नई स्वस्थ परंपरा का निर्माण किया। 2002 में श्री यशवन्त सिन्हा उन चुनिंदा वित्त मंत्रियों की श्रृंखला में जुड़ गए, जिन्होंने पाँच बजट प्रस्तुत किए।

पुस्तक के दूसरे भाग में बीमा, कृषि, कर, बैंक, विद्युत तथा अन्य क्षेत्रों में किए गए सुधारों पर प्रकाश डाला गया है। इस प्रक्रिया श्री सिन्हा ने जमीनी हकीकत से जुड़े व्यक्तियों के विचारों का लाभ उठाया। नवादा के एक किसान ने श्री सिन्हा से कहा ‘हुजूर हमारे खेतों में पानी का इंतजाम कर दें, ... इस इलाके को चमन बना देने, वित्तीय घाटे को नियंत्रण में लाने के लिए सरकारी व्यय में कमी, सभी योजनाओं की समग्र समीक्षा, भविष्य निधि के ब्याज में कमी जैसे कदम उठाए गए। विनिवेश व निजीकरण को प्रोत्साहन दिया गया तथा कपड़ा, संचार, पेट्रोलियम, सूचना, प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में सुधारों को लागू किया गया।

श्री सिन्हा ने पुस्तक के तीसरे भाग में वैश्वीकरण तथा स्वदेशी नीति की एकरूपता को दर्शाते हुए समूचे विश्व में भारत सरकार की आर्थिक नीतियों को सही ढंग से प्रस्तुत करने का उल्लेख किया है। साथ ही उन्होंने अपने वित्त मंत्री की जीवन-शैली त‍था उस दौरान कुछ बहुचर्चित विवादों के संबंध में अपना पक्ष रखा है।

श्री यशवंत सिन्हा की यह पुस्तक रोचक व पठनीय शैली में लिखी है। लेखक कहीं भी इसे तथ्यों से बोझिल नहीं होने देते हैं। अन्य मुद्‍दों को उतना ही स्थान दिया गया है, जितना पृष्‍ठभूमि के लिए जरूरी है। पूरी पुस्तक पढ़कर एक वित्त मंत्री के समूचे कामकाज की झलक मिलती है तथा देश के आर्थिक विकास में श्री सिन्हा के योगदान को भलीभाँति समझा जा सकता है।

‘माय इयर्स एज फाइनेंस मिनिस्‍टर’
‘कंफेशन ऑफ ए स्‍वदेशी रिफॉर्मर’ यशवंत सिन्‍हा
प्रकाशन : पेंगुइन बुक्‍स
पृष्‍ठ संख्‍या : 261
मूल्‍य : 450

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