युवा कवि देवेन्द्र कुमार द्वारा रचा गया काव्य संग्रह मैं और शब्द सहज, सरल और सुंदर कविताओं का एक जमघट सा लगता है, जहां हर कविता अपने आप में गहराई के साथ ही हल्का-फुल्कापन भी समेटे हुए है। ये कविताएं कहीं भी भारी भरकम नहीं लगती। मैं और शब्द में कवि ने कविताओं के माध्यम से अपने मन के हर भीगे कोने को पाठकों के समझ प्रस्तुत किया है। कुछ कविताएं कवि के आत्मसाक्षात्कार की भाषा को भी बयां करती हैं।
कहीं पर कवि ने प्रेम के प्रगाढ़ भावों को प्रस्तुत किया है तो कहीं कवि मन दूर से देखते हुए हालातों को गहराई के साथ शब्दों में बांधता है। भ्रम नामक कविता में इसकी गहराई को महसूस किया जा सकता है -
भ्रम की अवधि लंबी हो जितनी
हे प्रिये तुम्हें अपने पास पाता हूं
सान्निध्य की उष्मा और तुम्हारी शीतलता
केेवल आधार ही नहीं स्त्रोत हैं मेरे जीवन का
तुम पूरक हो मेरी और मैं दाास तुम्हारा
कवि ने अपनी कलम से आध्यात्म से जुड़े उन सवालों को भी शब्दों में पिरोया है, जो आम इंसान के मन में भी समय विशेष में उठते होंगे लेकिन हर बार उनकी अभिव्यक्ति नहीं होती। सीधी बात कविता में कही गई पंक्तियां अंत:करण से उठती असली आवाज सी लगती हैं -
दस अंकों वाली वह संख्या क्या है
जिससे हो सकती है तुमसे सीधी बात
पूछना है ढेरों सवाल, और देना होगा सीधे जवाब
कौन सा जन्म है यह मेरा
या कर्मों के फल के चक्कर में भेजता रहेगा आठ-दस बार
लगता है संकट में है अस्तित्व तेरा
बाजार की आकर्षित करती रौनक के पीछे एक अलग बाजार भी है जिसके लिए कवि के मन में उठते कई भावों को कुछ पंक्तियों में इस तरह से पिरोया गया है कि एक पल को बाजार से मन बेजार सा ही हो जाए -
शाम ढलते ही छा जाती है बाजारों में रौनक
हर शख्स व्यस्त होता है खरीदारी में
यहां रूप-यौवन बिकता है, सज-धज कर खड़ी हैं बाजार में वस्तुएं
जिन्हें धोखे से लाकर, खड़ा कर दिया गया बाजार में
मजबूरियां छिपाने को मुस्कुराती हैं वस्तुएं
स्त्री के जन्म से लेकर मृत्यु तक उसके अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष तक को कवि ने महसूस कर, स्त्री के नजरिए को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जिसमें बेटी के रूप में जन्म लेना केवल बेटी ही नहीं बल्कि मां का भी अपराध माना जाता है -
मां मैं जानती हूं, मेरे जन्म पर तुम कितना रोई थीं
दादा-दादी और पापा के, कितने ताने सहे थे
मां तुम्हारी कोख में मैं भी, भइया की तरह नौ महीने रही
जन्म में मेरे तुमने वही कष्ट सहे
बेटी के साथ यह कैसा दोहरा व्यवहार
प्रमुख कविता मैं और शब्द, जिसके अनुसार पुस्तक का नाम रखा गया है, इसमें कवि का शब्दों के साथ एक गहरा रिश्ता दिखाई देता है और शब्द व कवि एक दूसरे के पूरक से प्रतीत होते हैं....अभिन्न से लगते हैं जो कवि के भावों के साथ बनते, बिगड़ते, पिघलते हैं लेकिन अपना अस्तित्व नहीं खोते...
जल रहे हैं शब्द, मेरे जलने के साथ
बिलख रहे हैं शब्द, मेर बिलखने के साथ
टूट रहे हैं शब्द, मेरे टूटने के साथ
जलकर, बिलख कर और टूटकर भी
नहीं मिट रहा अस्तित्व इन शब्दों का...
कवि देवेन्द्र कुमार ने अपने काव्य संग्रह मैं और शब्द में हर विषय को न केवल भावुकता बल्कि अपनी बौद्धिक क्षमता और वैचारिकता और कल्पनाशीलता के साथ गढ़ा है। इस काव्य संग्रह की विशेषता यह भी है कि कविता का विषय आपकी पसंद न भी हो, तब भी कविताओं में उबाऊपन या भारीपन नहीं है। साथ ही कल्पनाशीलता होते हुए भी हर कविता सत्य के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है।
पुस्तक : मैं और शब्द
लेखक : देवेंंद्र कुमार
प्रकाशक : वैभव प्रकाशन
कीमत : 150 रुुपए