भारतीय काव्यशास्त्र के नए क्षितिज

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पुस्तक के बारे मे
डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी ने अपने आलोचनात्मक ग्रंथ 'भारतीय ‍काव्यशास्त्र के नए क्षितिज' में अपनी परंपरा से विरासत में प्राप्त ज्ञान को सहेजने की कोशिश की ह। क्योंकि हमारे साहित्य और सांस्कृतिक जगत की वही प्राणधारा है। पुरातन मनीषा आज के साहित्यालोचन की कहाँ-कहाँ तक सहयात्री हो सकती है, यही मूल चिंता लेखक के संपूर्ण विश्लेषण में व्याप्त है।

पुस्तक ‍के चुनिंदा अं
'काव्य के संबंध में विचार करने वाला प्रत्येक आलोचक इस बात से सहमत है कि काव्य और अनुभूति (या संवेदना) का सहज तथा अविच्छेद संबंध है। बहस और विवाद केवल इस बात पर है कि आज काव्य में अनुभूति और संवेदना का अनुपात क्या है? उसका नियोजन किस स्तर पर है? साथ ही उसकी बुनावट और बनावट कैसी है? विचारणीय यह है कि 'नई ‍कविता' और 'युवा कविता' की केंद्रीय वृत्ति क्या है- संवेदना या ज्ञान?' ('ध्वनि सिद्धांत और नवचिंतन' से)
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'मनोविज्ञान अपने ढंग से प्राय: प्रत्येक क्षेत्र में प्रतीक का अपने ढंग से विचार करता है, पद काव्यशास्त्री और कला चिन्तकों का अपना भी विचार है और इसलिए वह अलग से उपस्थापत्य है। भारतीय प्राचीन काव्यशास्त्र में एक कलात्मक उपकरण के रूप में प्रतीक की कहीं कोई चर्चा नहीं ‍मिलती। पाश्चात्य साहित्य शास्त्र में अवश्य एक कलात्मक उपकरण के रूप में उसकी चर्चा है।'
('प्रतीक और उसका तत्वदर्शन' से)
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'धर्म का मर्म वही पकड़ता है जो तर्क या चिंतन से उसे सदा जोड़े रहता है। महादेवीजी इसलिए कहती हैं कि उनका साहित्य, दर्शन के ब्रह्म का ऋणी है। निष्कर्ष यह कि इलियट के अनुसार वाजपेयी जी की कला का वर्तमान समस्याओं में रचनात्मक साहित्य के साक्ष्य पद पर निमग्न हुए और ऐसे मानदंडों की बात की जो शुक्ल जी से उनके काव्य प्रस्थान को पृथक करते हैं।'

'कला की वर्तमान समस्याओं में निमग्न होते हुए भी उन पर अतीत की मान्यताओं की प्रासंगिकता प्रदर्शन की दिशा में अग्रसर हुए हैं। इलियट परंपरावादी थे और मानते थे कि परंपरा में व्यक्ति को विसर्जित हो जाना चाहिए।'
('आलोचक प्रवर नंददुलारे ‍वाजपेयी' से)

समीक्षकीय टिप्पण
इस पुस्तक में आधुनिक काव्यशास्त्र के रूप में सक्रिय आलोचकों और समीक्षकों की सोच की व्यापक पड़ताल, उनके मतों की भारतीय संदर्भों में समीक्षा के द्वारा लेखक ने पुरातन चिंतन की सार्थकता को सिद्ध करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है। इसी के साथ पौरस्त्य और पाश्चात्य की वैचारिकता के प्रस्थान बिंदु, इलियट, क्रोचे, आदि मनीषियों के अवदान की चर्चा ने ग्रंथ की उपादेयता और भी बढ़ा दी है।

आलेख संग्रह : भारतीय काव्यशास्त्र के नए क्षितिज
लेखक : डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन,
पृष्ठ : 404
मूल्य : 450 रुपए

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