शांति का समर : पुस्तक अंश

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विगत दिनों राजकमल प्रकाशन ने बेहतरीन उपन्यासों की श्रृंखला प्रस्तुत की है। पेश है चर्चित पुस्तक शांति का समर का परिचय एवं प्रमुख अंश :

पुस्तक के बारे में
आजादी के साठ साल हो गए, पर विभाजन की पीड़ा मिटी नहीं है। विभाजन के बाद के दशक में पाकिस्तान ने अपने आपको एक ऐसे आधुनिक राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है जो भारत से भिन्न होने का दावा कर सकता है। इस प्रयास ने 1971 के युद्ध के बाद एक आवेग और प्रबलता हासिल की जब पाकिस्तान ने अपने भौगोलिक और सांस्कृतिक निकाय का महत्वपूर्ण हिस्सा खोया। इस पुस्तक में दोनों (भारत-पाक) देशों के बीच शांति प्रयासों के सामने आने वाली चुनौतियों का जायजा लिया गया है।

पुस्तक के चुनिंदा अंश
'गोडसे ने गाँधी की लंबी आलोचना दी थी और मेरा उद्देश्य यहाँ उसका सार प्रस्तुत करना नहीं है। उसका सबसे बड़ा आरोप था कि गाँधी भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार थे। असंख्य तर्कों और एक व्यक्तिगत विवरण की मदद से गोडसे यह आरोप लगाने में सक्षम हुआ। सबसे मुख्य तर्क यह था कि गाँधी मुसलमानों के समर्थक थे; वह हिन्दुओं को कुछ नहीं मानते थे और उनके हितों की उपेक्षा करते थे। एक समानांतर तर्क था कि गाँधी की अहिंसा एक सनक थी और वह राष्ट्र के लिए बहुत महँगी पड़ी।'

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पाकिस्तान की तरफ नजर डालें तो जिन आदर्शों को उसने महत्व दिया, उनकी प्राप्ति या अभिव्यक्ति की जरूरत नहीं थी। जिस आधार पर पाकिस्तान की माँग की गई थी, वह इस बात का भय था कि हिन्दू प्रमुखता में इस्लाम के आदर्श शायद सलामत नहीं रह सकते। इस तरह से आजाद राष्ट्र के रूप में रहने के संघर्ष में इस्लाम पाकिस्तान के लिए प्रतीकात्मक स्त्रोत बन गया। यह तो एक तरह का पारिस्थितिक व्यंग्य ही था कि जो व्यक्ति पाकिस्तान का प्रतीक बना और जिसने उसके सृजन को अपरिहार्य बनाया, वही व्यक्ति पाकिस्तान के संदर्भ में आजादी और प्रगति के लिए यूरोपीय दृष्टिकोण का प्रतिनिधि था।

भारत और पाकिस्तान में रहने वाले हम लोगों को यह मान लेना चाहिए कि युद्ध की राजनीति और उसका समर्थन करने वाले सामाजिक मानस हमारे अपने बनाए हुए हैं, इसलिए हम ही उनको बदल सकते हैं। निश्चय ही, परिस्थितियाँ आसान नहीं हैं और आधुनिकता का भ्रम बहुत ही गहरा है। बिना किसी कारण के हिंसा भड़काना राजनीतिज्ञों और मीडिया की मदद से उन्माद सा पैदा हो जाना अब एक आम बात हो गई है। इन मामलों में दोनों देशों में भयावह समानता है।

समीक्षकीय टिप्पणी
भारत और पाकिस्तान के संबंधों में भावनाओं, विचारों और संदेहों का एक बड़ा जंजाल आजादी के समय से फैला हुआ है, जो समय-समय पर टकराव की स्थिति पैदा कर देता है। इस पुस्तक में इस 'जंजाल' की छानबीन गहरे धीरज और इस आशा के साथ की गई है कि दोनों देश अपनी-अपनी राष्ट्रीय अस्मिताओं को बनाए रखते हुए शांति के एक नए दक्षिण एशियाई संदर्भ की रचना कर सकते हैं।

शांति का समर : भारत-पाक संबंधों पर आधारित पुस्त
लेखक : कृष्ण कुमा
अनुवादक : लतिका गुप्त
प्रकाशक : राजकमल प्रकाश
पृष्ठ : 156
मूल्य : 200 रु.

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