Pahalgam Attack: निस्संदेह, पहलगाम के बैसरन घाटी हमले पर पूरा देश क्षुब्ध हैं। चुन-चुनकर 26 निहत्थे हिन्दू पर्यटकों की हत्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के अंदर जम्मू कश्मीर के स्पष्ट दिख रहे परिवर्तित हालात की दृष्टि से असामान्य और सन्न करने वाली घटना है।ALSO READ: पहलगाम हमले पर प्रवासी कविता : निःशब्द
सन् 2000 के बाद पहलगाम क्षेत्र का यह सबसे बड़ा हमला है जिसमें 30 लोग मारे गए थे। पहलगाम जम्मू कश्मीर का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है और वहां से लगभग 10 किलोमीटर दूर बैसरन घाटी में पर्यटक पिकनिक मनाने का आनंद लेने जाते हैं। हरियाली और पूरा वातावरण गर्मी में जम्मू कश्मीर जाने वाले पर्यटकों को खींचता है। कहने वाले इसे स्विट्जरलैंड का प्रतिरूप भी बताते हैं।
लोग घुड़सवारियों से लेकर अलग-अलग किस्म का आनंद लेते हैं। ट्रैकिंग का एक कैंप साइड है जो तोलिया झील तक पर्यटकों को ले जाता है। पहलगाम से टट्टुओं के जरिए इस क्षेत्र तक पहुंचा जा सकता है और रास्ते में पहलगाम शहर और लीडर घाटी का मनोरम दृश्य है। वायसरन नामक घास का मैदान चारों ओर घने देवदार के जंगलों और पर्वतों से घिरा है। चूंकि जम्मू कश्मीर की स्थिति पिछले 5-6 वर्षों में काफी हद तक सामान्य हो गई है, इसलिए भारी संख्या में लोग अपने परिवार के साथ निर्भय होकर चारों ओर घूमते हैं। स्थानीय लोगों की दुकानें और अन्य कारोबार चल निकले हैं।
यह घटना भी एक सामान्य चाय नाश्ते की दुकान पर हुई। इस तरह की दुकानें कश्मीर घाटी से नदारत हो गए थे। आतंकवादियों के लिए ऐसी जगह अंधाधुंध गोलीबारी कठिन नहीं है। घटना का विवरण और इसकी पृष्ठभूमि हमें कई बातों पर विचार करने के लिए बाध्य करता है। आखिर यह कौन सी सोच है जिसमें आतंकवादियों ने मजहब प्रमाणित करके लोगों को मारा?
प्रधानमंत्री मोदी ने घटना को इतनी गंभीरता से लिया कि सऊदी अरब की यात्रा बीच में रोक वापस लौटे, विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ बैठक की तथा गृहमंत्री अमित शाह सीधे कश्मीर पहुंचे। इसके साथ गृहमंत्री शाह का घटनास्थल तक जाना आतंकवाद के विरुद्ध ही नहीं, जम्मू कश्मीर को हर दृष्टि से सामान्य, शांत और समृद्ध बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता को प्रमाणित करता है।
ऐसी भूमिका से लोगों को सुरक्षा का आश्वासन मिलता है तथा आतंकवादियों एवं उनको प्रायोजित करने वाली शक्तियों को सख्त संदेश। चूंकि यह घटना अमरनाथ यात्री निवास नुनवान बेस कैंप से महज 15 किमी. दूर हुआ और 3 जुलाई से अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है, तो यह मानने में भी समस्या नहीं है कि पर्यटकों के साथ तीर्थयात्रियों के अंदर भय पैदा करने के लिए हमला हुआ। इसके साथ अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की यात्रा तथा प्रधानमंत्री की सऊदी अरब जैसे प्रमुख मुस्लिम देश के दौरे से भी इसका संबंध जोड़ा जा सकता है।ALSO READ: Indus Waters Treaty: सिंधु नदी पाकिस्तान में कितने प्रतिशत बहती है और पानी रोकने के लिए क्या करना होगा?
आतंकवादी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है। इसके बारे में जानकारी यही है कि जब पाकिस्तान पर आतंकवादी संगठनों को प्रतिबंधित करने और नियंत्रित करने का दबाव बढ़ा तो लश्कर ए तैयबा और अन्य संगठनों ने टीआरएफ नाम कर लिया। इसका प्रमुख शेख सज्जाद गुल पाकिस्तान में है।
प्रधानमंत्री सऊदी अरब से लौटते समय पाकिस्तानी वायु मार्ग का इस्तेमाल नहीं करते तथा साढ़े पांच घंटे लगाकर भारत आते हैं, तो इसके निहितार्थ भी स्पष्ट हैं। सरकार को पाकिस्तान की भूमिका की सटीक सूचना नहीं होती तो ऐसा नहीं होता। जो जानकारी है उसके अनुसार आतंकवादी पाकिस्तान से निर्देश ले रहे थे।
आंतरिक संकटों से ग्रस्त पाकिस्तान और छवि सुधारने के लिए संघर्षरत सेना-आईएसआई के पास एकमात्र रास्ता जम्मू कश्मीर ही बचता है। जिस तरह सेना का उपहास उड़ाया जा रहा है, लोग सेना के विरुद्ध सड़कों पर उतरे हैं, उसके भ्रष्टाचार और विफलता के विवरण मीडिया, सोशल मीडिया में सामने आए हैं, उनसे सेना की चिंताएं बढ़ीं हुईं हैं। सेना प्रमुख जनरल आसिफ मुनीर का घृणाजनक और मुस्लिमों को भड़काने वाला भाषण इसी कड़ी का अंग था।
वस्तुत: जनरल मुनीर ने नए सिरे से इस्लामी जेहाद की बात की। उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान साथ नहीं रह सकते क्योंकि हम दो अलग कौम हैं। हमने पाकिस्तान के निर्माण के लिए लंबा संघर्ष किया है इसे मत भूलना। हालांकि सच यह है कि मुस्लिम लीग को पाकिस्तान निर्माण के लिए कोई आंदोलन नहीं करना पड़ा। उन्होंने जम्मू कश्मीर की चर्चा की। यह संकेत था कि सेना ने जम्मू कश्मीर में हिंसा करने की कुछ दीर्घकालीन तैयारियां की है। पाकिस्तान की आम जनता के विद्रोह से बचने के लिए यही एकमात्र रास्ता उनके पास बचा था।
देश में जब भी आतंकवाद के संदर्भ में पाकिस्तान का नाम लिया जाता है, कुछ लोग इसके विरुद्ध खड़े होते हैं और कहते हैं कि आर्थिक दृष्टि से विपन्न देश भारत के विरुद्ध हिंसा कैसे कर देगा। भूल जाते हैं कि हिंसा करने के लिए शक्तिशाली होना आवश्यक नहीं है।
जम्मू कश्मीर में इस्लाम के नाम पर भड़काना और पहले से व्याप्त आतंकवादियों के इंफ्रास्ट्रक्चर को केवल सक्रिय करना है। जनरल मुनीर ने यही किया है। सोशल मीडिया पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में कुछ दिनों पहले रिकॉर्ड किया गया एक वीडियो भी शेयर हो रहा है, जिसमें एक आतंकवादी जनसभा में खुलेआम भारत को लहूलुहान करने की धमकी दे रहा है।
इनकी सोच और रणनीति देखिए। घायल पुणे की आसाबरी जगदाले बता रहीं हैं कि आतंकवादी आए तो उनका परिवार डर से टेंट के अंदर छिपा था। उन्होंने उनके 54 वर्षीय पिता संतोष जगदाले से कहा कि वे बाहर आकर कलमा पढ़ें और जब वे ऐसा नहीं कर पाए, तो उन्हें तीन बार गोली मारी। उनके चाचा को भी गोली मारी।
एक महिला बता रही है कि मैं और मेरे पति भेल खा रहे थे तभी आतंकी आए और बोले कि ये मुस्लिम नहीं लग रहे, इन्हें मार दो और मेरे पति को गोली मार दी। वे मुस्लिम हैं या हिंदू यह जानने के लिए लोगों को नंगा किया गया। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद एवं अलगाववाद के पीछे सोच इसे इस्लामी राज्य में बदलना रहा है। इस्लाम के नाम पर ही आतंकवादी वहां अपनी जान देकर हमले करते रहे हैं।
जनरल आसिफ मुनीर ने केवल इसे सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त कर दिया। सेना प्रमुख के बयान का अर्थ है कि लंबे समय से इस पर काम किया जा रहा था। आतंकवादियों की योजना यही है कि वह कश्मीर के स्थानीय मुस्लिम निवासियों को संदेश दें कि हम मुसलमान होकर आपके हैं और गैर मुसलमान हमारे साझा दुश्मन हैं।
हालांकि आतंकवादी संगठन, अलगाववादी तथा पाकिस्तान भूल रहा है कि भारत, जम्मू कश्मीर और वैश्विक अंतरराष्ट्रीय स्थितियां भी बदली हुई है। जम्मू कश्मीर के स्थानीय लोगों को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद बदली स्थिति का लाभ मिला है। वे खुलकर हवा में सांस लेने लगे हैं, बच्चे पढ़ने लगे हैं, खेलकूद व सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग ले रहे हैं और सबसे बढ़कर विकास उनके घर तक पहुंच रहा है। पहले की तरह वहां आतंकवादियों से मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के विरुद्ध प्रदर्शन, पत्थरबाजी और नारा नहीं लगता।
यह तो नहीं कह सकते कि आतंकवादियों का स्थानीय समर्थन बिल्कुल खत्म हो गया है, क्योंकि ऐसा होने के बाद उनका वहां रहना मुश्किल हो जाता। सारे अनुभव, लोगों की प्रतिक्रियाएं एवं खुफिया जानकारियां बतातीं हैं कि स्थिति पहले की तरह तो नहीं है। पुराने मंदिर एवं अन्य गैर मुस्लिम धर्मस्थल धीरे-धीरे खुले हैं। कभी पाकिस्तान को अमेरिका या कुछ यूरोपीय देशों की अंतरराष्ट्रीय नीति के कारण शह मिल जाता था किंतु अब वह अकेला है। अफगानिस्तान तक उसके विरुद्ध खड़ा है तथा अंदर बलूचिस्तान, सिंध, वजीरिस्तान आदि में विद्रोह का झंडा बुलंद है।
ज्यादातर प्रमुख मुस्लिम देश भी पाकिस्तान का साथ देने को तैयार नहीं। भारत की स्थिति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछले 10 वर्षों में काफी बदली है और दो बार सीमा पार कार्रवाई करके प्रदर्शित भी किया गया है कि हम प्रायोजित आतंकवाद का मुंह तोड़ जवाब देने वाले देश बन चुके हैं।
अमेरिका, रूस और यूरोपीय देश ही नहीं कई मुस्लिम देशों ने इस घटना में भारत के साथ होने का बयान दिया है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी अगर दोषियों को बख्शे नहीं जाने की बात कर रहे हैं और अमित शाह मोर्चा संभाले हैं तो आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के लिए अब तक का सबसे बुरा समय होगा।