हिंद स्वराज : गाँधी का शब्द अवतार

दिनेश कुमार
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'हिंद स्वराज' के शताब्दी वर्ष में उसकी प्रासंगिकता और पुनर्मूल्यांकन को लेकर बौद्धिकों के बीच विचार-विमर्श का दौर नए सिरे से शुरू हुआ है। वर्तमान में, गाँधी और हिंद स्वराज को लेकर जितना लिखा जा रहा है उतना शायद पिछले साठ वर्षों में भी नहीं लिखा गया है। आज हिंद स्वराज का इस कदर महत्वपूर्ण हो उठने का कारण यह है कि पूंजीवाद के विकल्प के रूप में मार्क्सवाद के कसौटी पर खरे न उतरने के बाद हिंद स्वराज एक ऐतिहासिक अनिवार्यता बन गई है।

सुपरिचित लेखक व गाँधीवादी चिंतक गिरिराज किशोर की पुस्तक 'हिंद स्वराज' की इसी ऐतिहासिक अनिवार्यता को रेखांकित करने के लिए लिखी गई है। शताब्दी वर्ष पर लिखी गई अन्य पुस्तकों से यह इस दृष्टि से विशिष्ट है कि इसमें हिंद स्वराज के प्रत्येक अध्याय का अलग-अलग पाठ केंद्रित विश्लेषण वर्तमान समय की परिस्थिति और समस्याओं के संदर्भ में किया गया है। पाठ-केंद्रित बारीक विश्लेषण पुस्तक के नाम 'गाँधी का शब्द अवतार' की सार्थकता को स्वतः सिद्ध कर देता है।

यह पुस्तक तीन खंडों में है। पहला खंड गाँधी और हिंद स्वराज को लेकर बौद्धिक विमर्श का है। दूसरे खंड में हिंद स्वराज की पाठ चर्चा है और तीसरे खंड में हिंद स्वराज के मूल माठ का हिंदी अनुवाद हैं इस तरह इस पुस्तक में हिंद स्वराज को उसकी संपूर्णता में समझने और समझाने का प्रयास किया गया है। संतोष की बात है कि इस प्रयास में लेखक बहुत हद तक सफल भी हुआ है।

बीसवीं सदी में गाँधी और हिंद स्वराज को लेकर हुई लगभग सभी महत्वपूर्ण वैचारिक बहसों के साथ संवाद और संघर्ष करते हुए गिरिराज किशोर वर्तमान समय में गाँधी के चिंतन की प्रासंगिकता और मौलिकता को रेखांकित करते हैं। इस क्रम में वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वैश्वीकरण के इस युग में तीसरी दुनिया के लिए आज भी हिंद स्वराज साम्राज्यवादी सोच का विकल्प प्रस्तुत करता है।

इस निष्कर्ष पर पहुँचने में उन्होंने पीसी जोशी, भिक्खु पारेख, सुनील सहस्त्रबुद्धे, रामचंद्र गुहा, शिव विश्वनाथन, ईवान इलिच आदि विचारकों की संदर्भ के रूप में लिया है। इसी तरह, दूसरे खंड में हिंद स्वराज की पाठ चर्चा में एंथनी परेल की पुस्तक 'हिंद स्वराज एंड अदर राइटिंग्स' एक अनिवार्य संदर्भ के रूप में उपस्थित है।

गिरिराज किशोर ने अपनी इस पुस्तक में गाँधी और हिंद स्वराज को लेकर उठाए गए हर प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की है। इस सिलसिले में उन्होंने बौद्धिक ईमानदारी का परिचय दिया है। उन्होंने अपनी ही धारा के एक प्रमुख बुद्धिजीवी किशन पटनायक के हिंद स्वराज संबंधी मंतव्यों पर चुप्पी न साधकर उसका भी माकूल उत्तर दिया है।

समाजवादी थिंक टैंक के सदस्य होने के बावजूद किशन पटनायक का यह कहना कि 1937 में गाँधी, अधिक परिपक्व और क्रियाशील हो गए थे, इसलिए उन्हें दुबारा हिंद स्वराज लिखना चाहिए था, गिरिराज किशोर को चकित करता है। वे पलट कर पूछते हैं-'अगर गाँधी अधिक मैच्योर और डायनेमिक हो गए थे तो केवल हिंद स्वराज लिखने की दृष्टि से ही हुए थे, अपनी रचना के पुनर्मूल्यांकन करने की दृष्टि से नहीं हुए थे?' इस तरह की कई बौद्धिक और विचारोत्तेजक बहसे इस पुस्तक में भरी पड़ी हैं।

अपने रचनात्मक लेखन 'पहला गिरमिटिया' के दौरान किए गए बौद्धिक और तथ्यात्मक कार्यों ने गिरिराज किशोर के हिंद स्वराज संबंधी चिंतन को काफी स्पष्ट और धारदार बनाया है। इस किताब को सृजन कर्म का चिंतन के रूप में उत्कृष्ट प्रतिफलन कह सकते हैं।

पुस्तक : हिन्द स्वराज : गाँधी का शब्द अवतार
लेखक : गिरिराज किशोर
प्रकाशक : सस्ता साहित्य मंडल
मूल्य : 100 रुपए

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