ऐसे दस्तावेज बहुत कम हैं जिनमें कस्तूरबा के निजी जीवन या उनकी व्यक्ति-रूप में पहचान को रेखांकित किया जा सका हो। नहीं के बराबर। इसीलिए उपन्यासकार को भी इस रचना के लिए कई स्तरों पर शोध करना पड़ा। जो किताबें उपलब्ध थीं, उनको पढ़ा, जिन जगहों से बा का संबंध था उनकी भीतरी और बाहरी यात्रा की और उन लोगों से भी मिले जिनके पास बा से संबंधित कोई भी सूचना मिल सकती थी।
इतनी मशक्कत के बाद आकार पा सका यह उपन्यास अपने उद्देश्य में इतनी संपूर्णता के साथ सफल हुआ है, यह सुखद है। इस उपन्यास से गुजरने के बाद हम उस स्त्री को एक व्यक्ति के रूप में चीन्ह सकेंगे, जो बापू के 'बापू' बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया में हमेशा एक खामोश ईंट की तरह नींव में बनी रही। और उस व्यक्तित्व को भी जिसने घर और देश की जिम्मेदारियों को एक धुरी पर साधा।
19वीं सदी के भारत में एक कम उम्र लड़की का पत्नी रूप में होना और फिर धीरे-धीरे पत्नी होना सीखना, उस पद के साथ जुड़ी उसकी इच्छाएं, कामनाएं और फिर इतिहास के एक बड़े चक्र के फलस्वरूप एक ऐसे व्यक्ति की पत्नी के रूप में खुद को पाना जिसकी ऊंचाई उनके समकालीनों के लिए भी एक पहेली थी।
प्रकाशित कृतियां : लोग, चिड़ियाघर, जुगलबंदी, दो, तीसरी सत्ता, दावेदार, यथा-प्रस्तावित, इन्द्र सुनें, अंतर्ध्वंस, परिशिष्ट, यात्राएं, ढाईघर, गिरमिटिया (उपन्यास), नीम के फूल, चार मोती बेआब, पेपरवेट, रिश्ता और अन्य कहानियां, शहर-दर-शहर, हम प्यार कर लें, गाना बड़े गुलाम अली खां का, जगत्तारणी, वल्दरोजी, आन्द्रे की प्रेमिका और अन्य कहानियां (कहानी-संग्रह), नरमेध, घास और घोड़ा, प्रजा ही रहने दो, जुर्म आयद, चेहरे-चेहरे किसके चेहरे, केवल मेरा नाम लो, काठ की तोप (नाटक), गुलाम-बेगम-बादशाह (एकांकी-संग्रह), कथ-अकथ, लिखने का तर्क, संवाद सेतु, सरोकार (निबंध-संग्रह)।
सम्मान : हिन्दी संस्थान उत्तरप्रदेश का नाटक पर 'भारतेन्दु पुरस्कार', मध्यप्रदेश साहित्य परिषद का परिशिष्ट उपन्यास पर 'वीरसिंह देव पुरस्कार', उत्तरप्रदेश हिन्दी सम्मेलन द्वारा 'वासुदेव सिंह स्वर्ण पदक', 1992 का 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार', 'ढाईघर' के लिए उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'साहित्य भूषण सम्मान', महात्मा 'गांधी सम्मान', हिन्दी संस्थान, उत्तरप्रदेश, 'व्यास सम्मान', केके बिड़ला न्यास, नई दिल्ली, 'जनवाणी सम्मान', हिन्दी सेवा न्यास, इटावा।