-शिवकुमार शर्मा
अखिल भारतीय सेवा के मध्यप्रदेश काडर के अधिकारी डॉ. मनोहर अगनानी द्वारा लिखी गई पुस्तक को कोराना काल के दोनों लॉकडाउन में दो बार पढ़ा। 52 शीर्षकों में विभक्त इस पुस्तक को पढ़ते हुए मेरे अपने जीवन की अनेक घटनाएं स्मृति पटल पर तरंगित हुई। कभी हर्षातिरेक, कभी विषाद, कभी रोमांचित करने वाले प्रेरक प्रसंग, कभी भाव विह्वलता की स्थितियां बनी तो कभी काल क्रम के प्रभाव के दर्शन, सामाजिक समस्याओं से साक्षात्कार हुआ और सामाजिक सरोकार का रेखांकन मानस पटल पर उभर कर आया।
स्तुतः लेखक की एकांत की आहट के पूर्व भी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई है-मिसिंग गर्ल्स, कहां खो गई बेटियां तथा अन्दर का स्कूल इनमें प्रथम दोनों पूर्णतः बेटियों को समर्पित हैं। अन्दर के स्कूल एवं एकांत की आहट संस्मरणों के चुनिंदा मोतियों की मालाएं हैं। लेखक को देश में गिरते लिंगानुपात, समाज में लिंग भेद की समस्या ने ह्दयतल से चिंतित किया है इसके अतिरिक्त समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों और विसंगतियों ने भी लेखक के मन को विचलित किया है।
उक्त विचारमाला भाषा बद्ध होकर इन पुस्तकों के स्वरूप में प्रकट होकर हमारे सामने है। लेखक की शिक्षा-दीक्षा चिकित्साक्षेत्र की है, पेशे से अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी है और लेखन सामाजिक विषयों पर है अर्थात चिकित्सक, प्रशासक एवं लेखक तीनों के पृथक-पृथक दर्शन के अदभुत समन्वय से बने समाजशास्त्री हैं एकांत की आहट के लेखन को पढ़कर ऐसा अनुभव हुआ है।
क्षणे-क्षणे यन्नवतामुपैति तदैव रूपं रमणीयताया (शिशुपाल वधम 4/17) अर्थात जो प्रत्येक क्षण नवीनता को धारणा करता है वही रमणीयता है अर्थात सुन्दरता है। पुस्तक का प्रत्येक शीर्षक एक नई सीख देते हुए प्रकट होता है जो, प्रतिभा प्रसूत है। यह पुस्तक न केवल संस्मरणों का लिपिबद्ध स्वरूप मात्र है अपितु लोक जीवन की सहज शैली की निरूपम सौन्दर्य बोधदायी साहित्यक कृति है।
इसे पढ़कर प्रत्येक पाठक अपने जीवन में घटित घटनाओं से साम्य बिठाकर अन्तर्मन में अतुलनीय आनन्दाधिगम को प्राप्त करता है। पुस्तक में दैनिक जीवन की छोटी से छोटी घटना-प्रघटना से प्राप्त होने वाली अनुभव जन्य सीख को लेखनी के माध्यम से एकान्त की आहट में भाषाबद्ध किया गया है। रोजमर्रा का जीवन अपने आप में सभी रसों (09) से सराबोर होता है। जीवन क्रम के उतार-चढ़ाव वे छन्द है जिनमें रस और अलंकार मौजूद रहते हैं।
साहित्य के अन्तर्गत काव्य में रसों की मौजूदगी की विवेचना व्याख्या में प्रायः शुमार होती है, परन्तु इससे भिन्न इस पुस्तक में वर्णित तथ्य एवं कथ्य गद्य शैली में यत्र-तत्र जीवन के रस बरसाते हुए एक बेहतर संदेश के साथ अवतरित हुए हैं यह इस पुस्तक की रमणीयता है।
पुस्तक की भाषा जनसामान्य से पहुंच के भीतर है। लेखन में विषय को स्पष्ट करने के लिए उर्दू, फारसी शब्द जैसे फितरत, जूनून, शख्स, मसगूल, जिक्र, सलीका, तालीम खूबसूरत, सबब, मेहफूज, लिहाजा, जाहिर, इंतजार, बेसब्र, खुशफहमी, आलम, सकून, शुमार, खामियाजा, मुमकिन, अफसोस, आदि तथा अंग्रेजी के मैटेनेंस, रेस्पांस, फिटनेस, र्मोनिंग वॉक, सेंड ऑफ, शिफ्ट, लोकेशन, बैक्टीरियल इन्फेक्शन, कंसेप्ट, को डिजाईनर, टेम्परेरी सर्वर, अपडेट, ऐन्टीबायोटिक, साइड इफेक्ट, एलर्जी, टेक्नालॉजी, ब्लंडर, सिक जोक्स, आदि शब्दों का प्रयोग करने में कोई परहेज नहीं किया गया है। इस प्रकार इस पुस्तक में हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों की त्रिवेणी में पाठक सहजता से स्नान कर सकते हैं।