लंबी कविता का संग्रह 'वह बाला' के संबंध में लेखक का मानना है कि यह काव्य प्रेरणा हरिवंशराय बच्चन की 'मधुशाला' से है। जो पाठक श्रृंगार रस में रुचि रखते हैं, उन्हें कृति जरूर पसंद आएगी। हालांकि यह भी एक सुखद आश्चर्य है कि घोड़े की लगाम थामने वाले हाथों ने कलम थामी और एक लंबी कविता रच डाली।
पेशे से रुस्तमजी सशस्त्र पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय, इंदौर में वेटरनिटी ऑफिसर रहे और कुशल घुड़सवार व प्रशिक्षक डॉ. किशोर विनायकराव काले की इस काव्य कृति में न तो तुकबंदी है और न ही मुक्त छंद का कोई नियम। दरअसल, यह काव्य कृति उनके हृदय से निकला स्वस्फूर्त प्रेम है।
डॉ. काले ने यह काव्य कृति अपने स्व. माता-पिता को समर्पित की है। 'वह बाला' पर नरहरि पटेल ने बहुत ही सुंदर टिप्पणी लिखी है। उन्होंने लिखा है कि 'वह बाला' ऐसी अशरीरी काव्य बाला है, जो स्वप्निल पात्र रूप धारण कर मानवीय मोह, उन्माद, भ्रम, आशा, विश्वास के विविध बिम्ब उकेरती है।