'शिक्षा केवल संस्कारित ही नहीं करती, इसमें भारत-पाकिस्तान जैसे विभाजित देशों के बीच सौहार्द स्थापित करने की शक्ति भी निहित होती है। बशर्ते, शैक्षिक महत्व और भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में स्कूली बच्चों को तथ्यात्मक जानकारी दी जाए।' तकरीबन ऐसे ही विचारों की विश्लेष्णात्मक गहन व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कृष्ण कुमार की पुस्तक 'प्रैजुडिस एंड प्राइड' हिन्दी पाठकों के बीच 'मेरा देश, तुम्हारा देश' शीर्षक से आई है।
'अतीत की चुनौती', 'विरोधी इतिहास' और 'भविष्य की संभावनाएँ' भागों के अंतर्गत कृष्ण कुमार ने ''बच्चे और अतीत'', ''विचारधारा और पाठ्य पुस्तकें'', ''एकता और बिखराव'', ''विपरीत कल्पनाएँ'', ''विभाजन, बच्चों की कलम से (दिल्ली और लाहौर के)'' ''इतिहास और शांति'' जैसे विषयों पर सारगर्भित तथ्यों और प्रसंगों का उल्लेख करते हुए विद्वान लेखक ने भारत-पाकिस्तान की शैक्षिक स्थितियों पर वैचारिक मंथन प्रस्तुत किया है।
इन अध्यायों में यह प्रतिपादित किया गया है कि दोनों ही देशों की स्कूली ऐतिहासिक पुस्तकें किस कदर राष्ट्रवाद के पूर्वाग्रह और असहिष्णु भाव से ग्रस्त हैं। अध्यायों के अंत में कृष्ण कुमार की अपूर्वानंद से बातचीत भी सम्मिलित है, जो अनेक ज्वलंत प्रश्नों पर चिंतन के नए आयाम देकर माहौल में बदलाव की संभावनाओं को तलाशने में मदद करती है।
वस्तुतः अंतिम अध्याय ''भविष्य की संभावनाएँ को चिंतन के अग्रिम अध्यायों की शुरुआत माना जाना चाहिए, क्योंकि इसमें उस शैक्षणिक योजना की ओर इशारा किया गया है, जिसकी जरूरत इतिहासके शिक्षण को शांति का औजार बनाने के लिए होती है।
''भविष्य की संभावनाएँ को चिंतन के अग्रिम अध्यायों की शुरुआत माना जाना चाहिए, क्योंकि इसमें उस शैक्षणिक योजना की ओर इशारा किया गया है, जिसकी जरूरत इतिहासके शिक्षण को शांति का औजार बनाने के लिए होती है।
कहने की जरूरत नहीं, ऐसी पुस्तकें देश की लिपिबद्ध साहित्यिक और ऐतिहासिक धरोहर होती हैं, जिन्हें पढ़ा नहीं, सहेजकर रखा भी जाना चाहिए।
*पुस्तक : मेरा देश : तुम्हारा देश * लेखक : कृष्ण कुमार * प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रालि 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली-2 * मूल्य : रु. 300/-