मकड़जाल : लघुकथा संग्रह

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लघुकथा हिन्दी में इन दिनों एक लोकप्रिय विधा का रूप लेती जा रही है। ये कथा का लघु रूप है। इसमें शिल्प के विस्तार की ज्यादा संभावना नहीं है। इस दृष्टि से ये आसान है, जबकि इसके उलट इसमें बहुत थोड़े में अपनी बात रोचक रूप से प्रस्तुत करना पड़ती है, इस दृष्टि से ये अपेक्षाकृत एक मुश्किल विधा है।

अपने पहले लघुकथा संग्रह मकड़जाल में कथाकार मनोज सेवलकर द्वारा विधा को साधने का पर्याप्त प्रयास नजर आता है। कुल 51 लघुकथाओं में विषय और कथ्य की विविधता है। तेज भागती दुनिया में हाशिए पर छूटे मूल्य और संवेदनाओं का कोलाज-सा नजर आता है इस संग्रह में। घर-परिवार में घटने वाली छोटी-छोटी और रोजमर्रा की घटनाओं के बहाने कोई संदेश हो या फिर सामाजिक विद्रूप हो, प्रकृति के छीजते जाने की चिंता हो या फिर रोजी-रोटी की जद्दोजहद के दौरान उभरती सीख, सभी को कथाकार ने अपने लेखन में जगह दी है।

संग्रह का शीर्षक और पहली ही कहानी मकड़जाल दरअसल एक प्रतीकात्मक शीर्षक और कहानी है। एक तरफ अपनी कहानी बकरे की मां और याचक के माध्यम से सहज मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदन-शीलता को शब्द दिए तो वहीं कहानी अवाइड के माध्यम से सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति उपेक्षा बरतती अ-संवेदनशील लोगों पर अपनी कलम चलाई है।

कहानी मेहमान, रोटी मिंस पुअर मेंस ब्रेड और जिम्मेदारी का बस्ता में कथाकार ने आर्थिक विषमता को भी छुआ है। जीवन के लगभग हरेक पहलू को छूती कहानियों में जीवन का दर्द बह रहा है तो खुशी भी नजर आती है। कहानियां बोलचाल की सरल भाषा में लिखी गई हैं और कुछ में बहुत सहजता से शिल्प की बुनावट भी नजर आती है। तेज दौड़ते समय में लंबी कहानियों के जटिल शिल्प की तुलना में मकड़जाल की अर्थपूर्ण, सरल और सहज कहानियों को पढ़ना जीवन के कई रूपों में होने वाला साक्षात्कार कहा जा सकता है।

पुस्तक : मकड़जाल
लेखक : मनोज सेवलकर
प्रकाशक : लता साहित्य सदन, गाजियाबाद
मूल्य : 180 रुपए।

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