उस साहित्यिक आयोजन में सभागृह के बाहर की लॉबी में कुर्सी और मेज लिए आगंतुकों के नाम ,पते और हस्ताक्षर नोट करवाने के लिए एक व्यक्ति बैठा था। सभी के हाल में दाखिल होने से पहले वह सबसे इस बारे में आग्रह कर रहा था। अपेक्षा ने भी अपनी बारी आने पर अपनी जानकारी रजिस्टर में लिख दी।
अपना वाक्य पूरा करते हुए अपेक्षा गर्व के साथ हाल में दाखिल हो गई।
मंच पर बड़े-बड़े अक्षरों में कार्यक्रम का विषय लिखा था अपनी मातृभाषा हिन्दी को कैसे बचाएं। उसका मन कह रहा था कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है या मात्र एक भाषा....!