जानिए हिन्दी के बारे में 25 विद्वानों के विचार
हिन्दी हमारे दिलों में रचती-बसती है। आइए हिन्दी दिवस पर जानते हैं क्या कहते हैं साहित्यकार, राजनेता और अन्य विद्वान। पढ़ें 25 अमूल्य विचार:-
1. 'मैं उन लोगों में से हूं, जो चाहते हैं और जिनका विचार है कि हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है।' - बाल गंगाधर तिलक
2. मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती। भगवान भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती। - मैथिलीशरण गुप्त
3. संस्कृत मां, हिन्दी गृहिणी और अंग्रेजी नौकरानी है। - डॉ. फादर कामिल बुल्के
4. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। - भारतेंदु हरिश्चंद्र
5. समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। - (जस्टिस) कृष्णस्वामी अय्यर
6. है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी। हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी। - मैथिलीशरण गुप्त
7. संस्कृत की विरासत हिन्दी को तो जन्म से ही मिली है। - राहुल सांकृत्यायन
8. राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। - महात्मा गांधी
9. कैसे निज सोए भाग को कोई सकता है जगा, जो निज भाषा-अनुराग का अंकुर नहिं उर में उगा। - अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
10. हिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है। - माखनलाल चतुर्वेदी
11. हिन्दी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। - महात्मा गांधी
12. राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है। - महात्मा गांधी
13. हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य को सर्वांगसुंदर बनाना हमारा कर्तव्य है। - डॉ. राजेंद्रप्रसाद
14. राष्ट्रभाषा के बिना आजादी बेकार है। - अवनींद्रकुमार विद्यालंकार
15. हिन्दी का काम देश का काम है, समूचे राष्ट्रनिर्माण का प्रश्न है। - बाबूराम सक्सेना
16.हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है। - वी. कृष्णस्वामी अय्यर
17. हिन्दी साहित्य की नकल पर कोई साहित्य तैयार नहीं होता। - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
18. राष्ट्रीय एकता की कड़ी हिन्दी ही जोड़ सकती है। - बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
19. हिंदुस्तान को छोड़कर दूसरे मध्य देशों में ऐसा कोई अन्य देश नहीं है, जहां कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। - सैयद अमीर अली मीर
20. सरलता, बोधगम्यता और शैली की दृष्टि से विश्व की भाषाओं में हिन्दी महानतम स्थान रखती है। - अमरनाथ झा
21. जीवन के छोटे से छोटे क्षेत्र में हिन्दी अपना दायित्व निभाने में समर्थ है। - पुरुषोत्तमदास टंडन
22. हिन्दी में हम लिखें, पढ़ें, हिन्दी ही बोलें। - पं. जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी
23. देश में मातृ भाषा के बदलने का परिणाम यह होता है कि नागरिक का आत्मगौरव नष्ट हो जाता है। - सैयद अमीर अली मीर
24. नागरी वर्णमाला के समान सर्वांगपूर्ण और वैज्ञानिक कोई दूसरी वर्णमाला नहीं है। - बाबू राव विष्णु पराड़कर
25. स्वभाषा प्रेम, स्वदेश प्रेम और स्वावलंबन आदि ऐसे गुण हैं जो प्रत्येक मनुष्य में होने चाहिए। - रामजी लाल शर्मा