आज हम चिल्ला-चिल्लाकर कहेंगे,
हिन्दी राष्ट्रभाषा है,
हमें इसका सम्मान करना चाहिए।
फिर सॉरी, हैलो, हाय, बेबी,
शब्दों से उघाड़ते हैं उसका बदन।
बाजारीकरण के इस असभ्य दौर में,
और हिन्दी एक परचून की दुकान,
जो हमारी आत्मा तो तृप्त करती है,
पर पेट का पोषण नहीं।
जिसको पूजकर लोग,
उसी के सामने अश्लील नृत्य करते हैं।
संसद से लेकर सड़क तक,
सब हिन्दी का गुणगान करते हैं,