तीन तलाक बिल : तलाक, तलाक, तलाक नहीं चटाक, चटाक, चटाक

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तीन तलाक के मुद्दे पर हमने शहर की कुछ साहित्यकारों से बात की

: निरुपमा नागर के अनुसार : 
 
तीन तलाक बिल के राज्यसभा में पास होने के बाद अब कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है। मुस्लिम महिलाओं को अन्याय और अत्याचार से मुक्त करवाने वाले.इस कानून के बनने का श्रेय भी इंदौर को मिलता है।1984 में शाहबानो के केस में मिली सफलता ने ही कानून बनने की ओर पहला कदम रख दिया था।
 
बस यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आजकल महिला सशक्तिकरण के नाम पर कभी-कभी कानून का दुरुपयोग हो जाता है ,वह न हो ऐसे प्रावधान करते हुए ही मुस्लिम महिलाओं को सशक्त,समर्थ और खुशहाल बनाने के सरकार की यह सफलता कानून रुप में परिणत हो। 
 
नुपूर प्रणय वागले ने कविता के माध्यम से अपनी बात कही : 
 
तलाक तलाक तलाक !
 
कानों में जैसे मेरे डाल दिया गया हो तप्त लावा!
 
काले गहरे अंधकार सा जिस्म का पहनावा तो केवल एक संकेत था,
 
असली जिल्लत, रूह तक उतरता दर्द, तो काफी था मुझे गुलाम साबित करने के लिए।
 
क्योंकि ये तीन लफ्ज सुन मैं हमेंशा सोचती कि 
 
प्यार,इश्क,मोहबबतें, क्या ये सारे ख्वाब ही हैं? तिलिस्मी अल्फाज, कि कभी बदलते हैं ये भी हकीकतों में ?
 
या कि ये भी केवल एक दिखावा,एक छल हैं तुम्हारे होने की तरह।
 
हर पल उधार की सांसें जीने को मजबूर मेरा यह तन,और सर पर लटकती तलवार के साये में छटपटाता मेरा मन।
 
और जिंदगी ही क्या, 
 
मेरी बनाई सब्जी में कोई कमी,

कोई गलती हो तो,उसी सब्जी के तेजपान को तरह मुझे अपनी जिंदगी से निकाल फेंकने के अधिकार का रौब दिखाते तुम।
 
या कि अपनी मर्दानगी दिखाने,अपने मजहब का वास्ता देकर बच्चा पैदा करने वाला एक जिस्म,जिसमें एक कतरा मोहब्बत नहीं।
 
घुट रहा था मेरा मन,कठपुतली थी तुम्हारे ईशारों की, क्योंकि उसकी डोर तुम्हारे हाथों में थी अब तक।
 
तलाक तलाक तलाक
 
लेकिन बस 
 
अब मैं लडूंगी,और जीतूंगी अपनी स्वाभिमान की,सम्मान की लड़ाई और पूरे करूंगी अपने ख्वाब,

अपनी हसरतें,ख्वाहिशें अपनी और तुम सुन सकोगे मेरी आजाद रूह से निकली एक गूंज जो तुम्हारे कानों में डालेगी गर्म लावा और तुम्हारे मुंह पर एक तमाचा चटाक चटाक चटाक...  

महिमा शुक्ला ने अपनी बात पर 4 सवाल उठाए 
 
 
1. निश्चित रूप से ट्रिपल तलाक़ का विधेयक पारित होना मुस्लिम पत्नियों के लिए एक राहत का क़दम है।
 
2. समुचित क़ानून जब विस्तृत रूप से बनेगा, तब इसका वास्तविक स्वरूप दिख पाएगा कि महिला को कितना और कैसे राहत दी जाएगी?
 
3. कम शिक्षा और जागरूकता के अभाव से क़ानून से कितना लाभ होगा?
 
4. परिवार, समाज, धार्मिक दुराग्रह और मुस्लिम/इस्लामी रीति/परंपरा इसे कैसे सफल होने देगी?
 
इन सब समस्याओं के प्रति भी समाधानात्मक रास्ता खोजा जाना चाहिए, वर्ना फिर वही स्‍थापित क़ानून की तरह ये भी भोथरा साबित ना हो जाए?
 
महिला की आर्थिक स्थिति और क़ानूनी सलाह दिए जाने की परवाह भी की जानी चाहिए।

लेखिका निधि जैन ने कहा कि शरीक ए हयात अब सच में हयात में बिना किसी ख़ौफ़ के शरीक होगी। औरत के लिए तलाक़ महज शब्द नहीं ज़िंदगी भर सर पर लटकने वाली तलवार है वैवाहिक रिश्ते में तलाक़ की बेवजह धमकी और बेमियादी प्रताड़ना से मुस्लिम बहनों को आज़ादी मिलने की बधाई ....
 
बस आप सब ध्यान रखें और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें,अपने हक़ के लिए लड़ने की हिम्मत रखें। अन्यथा अन्य क़ानूनों की तरह इसकी भी धज्जियां उड़ जाएगी। क़ानून ने तो फ़ैसला दे दिया है अब असली फ़ैसला आप के हाथों में है... 

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