‘पहला गिरमिटिया’ के लेखक गिरिराज किशोर को साहित्य जगत ने दी श्रद्धांजलि
रविवार, 9 फ़रवरी 2020 (14:18 IST)
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार गिरिराज किशोर का रविवार सुबह कानपुर में उनके आवास पर हृदय गति रुकने से निधन हो गया। वह 83 वर्ष के थे। उनके निधन से साहित्य के क्षेत्र में शोक की लहर छा गई। मूलत: मुजफ्फरनगर निवासी गिरिराज किशोर कानपुर में बस गए थे और यहां के सूटरगंज में रहते थे।
गिरिराज किशोर के परिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने अपना देह दान किया है इसलिए सोमवार को सुबह 10:00 बजे उनका अंतिम संस्कार होगा। उनके परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है। तीन महीने पहले गिरने के कारण गिरिराज किशोर के कूल्हे में फ्रैक्चर हो गया था जिसके बाद से वह लगातार बीमार चल रहे थे।
वह हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार होने के साथ एक कथाकार, नाटककार और आलोचक भी थे। उनके सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक निबंध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे।
इनका उपन्यास ‘ढाई घर’ अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था। वर्ष 1991 में प्रकाशित इस कृति को 1992 में ही ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित कर दिया गया था। गिरिराज किशोर द्वारा लिखा गया ‘पहला गिरमिटिया’ नामक उपन्यास महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास पर आधारित था, जिसने इन्हें विशेष पहचान दिलाई।
गिरिराज का जन्म आठ जुलाई 1937 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फररनगर में हुआ था। उनके पिता ज़मींदार थे। गिरिराज ने कम उम्र में ही घर छोड़ दिया और स्वतंत्र लेखन किया।
वह जुलाई 1966 से 1975 तक कानपुर विश्वविद्यालय में सहायक और उपकुलसचिव के पद पर सेवारत रहे तथा दिसंबर 1975 से 1983 तक आईआईटी कानपुर में कुलसचिव पद की जिम्मेदारी संभाली।
राष्ट्रपति द्वारा 23 मार्च 2007 में साहित्य और शिक्षा के लिए गिरिराज किशोर को पद्मश्री पुरस्कार से विभूषित किया गया।
उनके कहानी संग्रहों में ‘नीम के फूल’, ‘चार मोती बेआब’, ‘पेपरवेट’, ‘रिश्ता और अन्य कहानियां’, ‘शहर -दर -शहर’, ‘हम प्यार कर लें’, ‘जगत्तारनी’ एवं अन्य कहानियां, ‘वल्द’ ‘रोजी’, और ‘यह देह किसकी है?’ प्रमुख हैं।
इसके अलावा, ‘लोग’, ‘चिडियाघर’, ‘दो’, ‘इंद्र सुनें’, ‘दावेदार’, ‘तीसरी सत्ता’, ‘यथा प्रस्तावित’, ‘परिशिष्ट’, ‘असलाह’, ‘अंर्तध्वंस’, ‘ढाई घर’, ‘यातनाघर’, उनके कुछ प्रमुख उपन्यास हैं।
महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीकी अनुभव पर आधारित महाकाव्यात्मक उपन्यास ‘पहला गिरमिटिया’ ने उन्हें साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान दिलायी।
वरिष्ठ साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने गिरिराज किशोर के निधन पर शोक जताते हुए कहा,‘‘ आज गिरिराज जी चले गए। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।’’
लेखक कृष्ण कल्पित ने फेसबुक पर लिखा- सौ पन्नों की अमर पुस्तक 'हिन्द स्वराज' लिखने वाले दुबले-पतले slim-smart गांधी के जीवन पर एक मोटा, लद्धड़ और लगभग अपठनीय उपन्यास 'पहला गिरमिटिया' लिखने वाले कथाकार-उपन्यासकार गिरिराज किशोर नहीं रहे। जीवनी-परक, शोध-परक और विषय-आधारित उपन्यास-लेखन साहित्य में दूसरे-दर्ज़े का काम समझा जाता है। गिरिराज किशोर इसके बाद सरकारी और अन्य संस्थाओं-ट्रस्टों से फ़ैलोशिप लेकर जीवनी-परक उपन्यास-लेखन का काम करते रहे।
इसके बाद गिरिराज किशोर ने 'बा' पर उपन्यास लिखा और अम्बेडकर और शिवाजी पर उपन्यास लिखने के लिए वे पता नहीं कहां-कहां वृत्ति के लिए प्रार्थना-पत्र लिखते रहे। मुझे गिरिराज किशोर के शुरुआती लघु-उपन्यास अच्छे लगते रहे। उनकी भाषा सहज-सरल थी और कथानक विश्वसनीय। साहित्य-अकादेमी में उनके हिन्दी-संयोजक रहते कई विवाद हुए जिसमें ऋतुराज जैसे महत्वपूर्ण कवि की उपेक्षा कर वीरेन डंगवाल को दिया पुरस्कार भी शामिल है। गिरिराज किशोर की स्मृति को नमन!
कहानीकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपने शोक संदेश में लिखा- साहित्य में हर तरह की पहल को लेकर उनका उत्साह विरल था। 75 की उम्र में इंटरनेट और ब्लॉगिंग सीखने की उनकी जिज्ञासा चकित करती थी। सही अर्थ में एक गांधीवादी को नमस्कार। हम सब गिरमिटिया हैं जीवन के।
लेखक संदीप नाईक ने लिखा- गांधी जी पर लिखें ‘पहला गिरिमिटिया’ जैसे कालजयी उपन्यास के लेखक और लंबे समय तक आईआईटी में भाषा अध्ययन केंद्र के निदेशक रहें गिरिराज किशोर जी का निधन दुखद और विचलित करने वाली खबर है। शब्द ही नही है, अभी दो माह पूर्व एक कार्यक्रम में उन्हें सुना था। नमन एवं श्रद्धांजलि।