• हिन्दी के प्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुण्यतिथि।
Rabindranath Tagore: आज भी रवीन्द्रनाथ टैगोर को केवल भारत के ही नहीं, समूचे विश्व के साहित्य, कला और संगीत के एक महान प्रकाश स्तंभ के रूप में जाना जाता है। आज 07 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि मनाई जा रही है।
हिन्दी के प्रख्यात कवि, नाटककार, उपन्यासकार, दार्शनिक, चित्रकार जैसी कई कलाओं का संगम रहे रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में...
रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 07 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेंद्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। रवीन्द्रनाथ अपने माता-पिता की 13वीं संतान थे। उन्हें बचपन में प्यार से 'रबी' बुलाया जाता था। रवींद्रनाथ जी को बचपन से ही कविताएं, कहानियां लिखने का शौक था।
उन्होंने मात्र 8 वर्ष की उम्र में अपनी पहली कविता लिखी, 16 वर्ष की उम्र में कहानियां और नाटक लिखने प्रारंभ कर दिए थे। उन्होंने प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल से अपनी पढ़ाई की और बैरिस्टर बनने के लिए सन् 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।
उन्होंने लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया, लेकिन सन् 1880 में बिना डिग्री लिए ही वहां से वापस आ गए। रवीन्द्रनाथ टैगोर संगीतप्रेमी थे और उन्होंने अपने जीवन में 2000 से अधिक गीतों की रचना की। इतना ही नहीं उन्होंने अपने जीवन में एक हजार कविताएं, आठ उपन्यास, आठ कहानी संग्रह और विभिन्न विषयों पर अनेक लेख लिखे।
उन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए भी राष्ट्रगान लिखे। आज उनके लिखे 2 गीत भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान हैं। जो 'जन-गण-मन' और 'आमार शोनार बांग्ला' जन-जन की धड़कन बने हुए हैं।
उनका विवाह मृणालिनी देवी के साथ हुआ। सन् 1901 में टैगोर ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांति निकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की। उन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा को नया आयाम दिया। जहां उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ को मिलाने का प्रयास किया। वह विद्यालय में ही स्थायी रूप से रहने लगे और 1921 में यह विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया।
जीवन के 51 वर्षों तक उनकी सारी उपलब्धियां और सफलताएं केवल कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रही। जब 51 वर्ष की उम्र में वे अपने बेटे के साथ इंग्लैंड जा रहे थे। समुद्री मार्ग से भारत से इंग्लैंड जाते समय उन्होंने अपने कविता संग्रह गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया।
गीतांजलि का अनुवाद करने के पीछे उनका कोई उद्देश्य नहीं था केवल समय बिताने के लिए ही उन्होंने एक नोटबुक में अपने हाथ से गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया। और लंदन में जहाज से उतरते समय उनका पुत्र उस सूटकेस को ही भूल गया, जिसमें वह नोटबुक रखी थी।
इस ऐतिहासिक कृति की नियति को कुछ ओर ही मंजूर था, क्योंकि वह सूटकेस जिस व्यक्ति को मिला उसने स्वयं उसे अगले ही दिन रवीन्द्रनाथ टैगोर तक पहुंचा दिया था। सितंबर 1912 में गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कुछ सीमित प्रतियां इंडिया सोसायटी के सहयोग से प्रकाशित की गई। लंदन के साहित्यिक गलियारों में इस किताब की खूब सराहना हुई। जल्द ही गीतांजलि के शब्द माधुर्य ने संपूर्ण विश्व को सम्मोहित कर लिया।
तब पहली बार भारतीय मनीषा की झलक पश्चिमी जगत ने देखी। गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल बाद सन् 1913 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अंग्रेज शासन ने भी उन्हें नाइटहुड की उपाधि देकर अलंकृत किया, लेकिन उन दिनों हुई जलियांवाला बाग की दर्दनाक घटना से व्यथित रवीन्द्रनाथ ने वह उपाधि उन्होंने लौटा दी थी।
महान व्यक्तित्व के धनी और हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का निधन प्रोस्टेट कैंसर रोग के कारण 07 अगस्त 1941 को कोलकाता में हुआ था, जो कि भारतीय साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति थी। लोगों के बीच उनका इतना सम्मान था कि वे उनकी मौत के बारे में बात तब नहीं करना चाहते थे।
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