सच्ची लगन, कर्मनिष्ठा और निरंतर प्रयास से उच्च शिखर पर बढ़ती रहो,
अपनी लक्ष्मण-रेखा स्वयं खींच कर मान-सम्मान की गरिमामयी घृत दीपज्योति, पवित्र आगंन की श्याम तुलसी, चौरे की राम तुलसी जैसी मर्यादित, सागर सी गंभीरता, आकाश की विशालता, नभ में अरुंधति-सी चमकती रहो,
मेरे आंगन में हल्दी-कुंकू की रंगोली सदा तुम दमकती रहो,
मेरे पावन संस्कारों में पली चेहरे पर मर्यादा-मोहिनी सजाए सदा तुम चहकती रहो,
मां गौरी का केशर-चंदन, भस्मी बाबा भोलेनाथ की हमेशा सुख के आशीषों से सराबोर रहो,
रिमझिम सावन की मधुर फुहारों से निशदिन भीगती रहो,
माता-पिता के आत्मसम्मान की रजनीगंधा मेरे मन की क्यारी में रोज-रोज महकती रहो... मेरी बेटी, सदा तुम खुश रहो...!