इन दिनों हम कम बातें करते हैं क्योंकि तुम हो मुस्लिम और मैं हिन्दू।
लेकिन इससे मेरा प्यार कम तो नहीं हो जाता मेरा इंतजार और मेरा इजहार सब वही रहता है ना कम होती है तुम्हें देखने की बेकरारी ना बढ़ती है दूरियाँ जब सिंकती है किसी मुद्दे पर राजनीतिक पूरियाँ।
तो क्या हम धर्म विरोधी है? ऐसा भी तो नहीं मैं रोज सूर्य को जल चढ़ाती हूँ पर चाँद से मेरा प्यार कम नहीं होता तुम ईद का चाँद देखने को बेकल होते हो तो क्या योगा करते हुए सूर्य से मुँह फेर लेते हो?
इश्क ना पूछे दीन-धरम, इश्क ना पूछें जाताँ इस एक पंक्ति को गुनगुनाते हुए भी इन दिनों हम कम बातें करते हैं कोई 'फैसला' हमारे बीच 'फासले' का सबब ना बनें यही हम चाहते हैं शायद इसीलिए इन दिनों हम कम बातें करते हैं।