नीति अग्निहोत्री
नया यशोगान गाया आकाश ने
जब एक नवीन भोर में
नन्हा सा नया सूरज झाँका
अगवानी में धरा ने
बिछा दिए पलक-पांवड़े
सर्द हवाओं ने प्रणाम कहा
और सूरज की गर्मी को
फैलाया चारों तरफ, ताकि
सभी को गर्मी व सुकून मिले
हर नई भोर जोड़ती है
प्रकृति और मनुष्य को एक
अनाम, अलिखित बंधन में सदा
जो जारी रहता आया है सदियों से
जारी रहेगा जब तक जीवन है
जीवन की अगवानी में यह
सारा तामझाम चलता है
हर दिन प्रात: नए संकल्प के साथ
एक नया बोध मिलता है कि
बस जियो और जीने दो ।