मछुवारिन टूटे तवे पर अपना दिल पकाती है नर्मदा में चाँदनी खिलती है, मुस्कुराती है दूर कहीं मल्लाह कोई दिल सोज राग अलापता है जिसका नन्हा बेटा रेवा की रेत में किरणों की नृत्य नाटिका रचता है जीवन के रस में सनी मछुवारिन की रोटी आपदा में कभी सूखती नहीं, कुम्हलाती नहीं दिल की गहराइयों से उठे लोक संस्कृति के मीठे राग संघर्षों में कभी कड़ुवाते नहीं, धुँधलाते नहीं उन छोटे पैरों से लयबद्ध निकले लोक संस्कृति के अनूठे नाच जीवन के प्रवाह में कभी रुकते नहीं, थकते नहीं रोटी रेवा रेत राग के लोकचित्र जनमानस से कभी मिटते नहीं!