हिन्दी कविता : कर्म...

कर के कर्म हे मानव तू,
पीछे क्यों पछताता है।


 
जैसा जो कर्म करता है,
वो वैसा फल पाता है। 
 
पथ पर जब तुम चलते हो,
क्यों सच को अपने डुबाते हो।
जब मेहनत का फल मिलता है,
तो फोकट में क्यों खाते हो।
 
उन्हीं बुरे कर्मों के द्वारा,
जीवन में संकट आता है।
कर के कर्म हे मानव तू,
पीछे क्यों पछताता है।
 
जैसा जो जैसा करता है,
वो वैसा फल पाता है।

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