अवधेश सिंह की चुनिंदा शायरी

1.
 
दिल है बेताब नज़र खोई हुई लगती है,
ज़िंदगी दु:ख में बहुत रोई हुई लगती है।
 
तुझको सोचों तिरी ताअत में रहूं तो मुझको,
ख़ुशबुओं से ये ज़मीं धोई हुई लगती है।
 
सांस लेते ही धुआं दिल में उतर जाता है,
आग सी शय यहां कुछ बोई हुई लगती है।
 
सामने हश्र नज़र आता है लेकिन दुनिया,
ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में अभी सोई हुई लगती है।
 
सब ज़फ़र-याब हुए अपने सफ़र में 'पारस',
मेरी मंज़िल ही फ़क़त खोई हुई लगती है।
 

 


2.
 
मुस्कुराते हुए फूलों का अरक़ सबका है,
उनके जलवों से अयां है जो सबक़ सबका है।
 
जिसको पढ़ने से मिरी ज़ीस्त ज़िया-बार हुई,
उस पे तहरीर ख़ुदा की है वरक़ सबका है।
 
जितनी हाजत हो मियां उतना ही हिस्सा लेना, 
अपने अतराफ़ के सामान पे हक़ सबका है।
 
मुट्ठियां भर के लहू मैंने उछाला बरसों,
इससे तश्कील हुआ रंग-ए-शफ़क़ सबका है।
 
लोग किस तरह दिखाते हैं तबस्सुम की नुमूद,
रूह कजलाई है चेहरा भी तो फ़क़ सब का है।

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