स्त्री का दर्द बयां करती हिन्दी कविता : पक्ष

स्त्री की उत्पीड़न की 
आवाज टकराती पहाड़ों पर
और आवाज लौट आती
सांझ की तरह 
नव कोंपले वसंत मूक बना 


 
कोयल फिजूल मीठी राग अलापे 
ढलता सूरज मुंह छुपाता 
उत्पीड़न कौन रोके 
मौन हुए बादल 
चुप सी हवाएं  
नदियों व मेड़ों के पत्थर 
हुए मौन 
जैसे सांप सूंघ गया 
झड़ी पत्तियां मानो रो रही 
पहाड़ और जंगल कटते गए 
विकास की राह बदली 
किन्तु उत्पीड़न की आवाजें  
कम नहीं हुई स्त्री के पक्ष में 
बद्‍तमीजों को सबक सिखाने 
वासंतिक छटा में टेसू को 
मानों आ रहा हो गुस्सा 
वो सुर्ख लाल आंखे दिखा 
उत्पीडन के उन्मूलन हेतु  
रख रहा हो दुनिया के समक्ष 
वेदना का पक्ष। 

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