धरपकड़ नए/पुराने बैंककर्मियों की, दिन-दिन फैल रहा है जाल।
पिंजरे में है इतराने वाला, पी. चिदंबरम का लाल।।
अवसरवादी गठबंधन-मेकर, लालू हाल-बेहाल।
जान छुड़ाने मांग रहा माफी, अब बड़बोला केजरीवाल।।1।।
उपचुनावों की जीतों ने, जगा दिए हैं कितने सपने।
परंपरागत प्रतिद्वंद्वी भी, लगने लगे अपने-अपने।।
उधर नोटबंदी/जीएसटी का, बासी राग अलापने वाले।
तैयार नहीं हैं अब भी, जमीनी ठोस यथार्थ समझने।।2।।
विपक्ष हो मजबूत इससे, कहिए किसको है इंकार।
अच्छे प्रजातंत्र में चाहिए, सचमुच दो दल दमदार।।
पर यारों, मत अवसरवादी गठजोड़ों पर इतराओ।
(वर्तमान शासक दल और मोदी से नेता का)
विश्वसनीय विकल्प तो, कोई कर दिखलाओ तैयार।।3।।