हिन्दी कविता : ये ढूंढ ही लाता है...

ये पकड़ता है इंसान 
ये पालता है आत्मा 


 
ये लांघता है सीमा 
ये सताता है कर्म 
 
बर्फ-सा ठंडा, अग्नि-सा गर्म, श्याम-श्वेत एहसास, 
अनोखा, अनदेखा, आजाद, अनियंत्रित
 
ये बहाता है आग 
ये जनता है आकांक्षा
ये पालता है मरुस्थल
ये थामता है तूफां
 
घने सपनों के कोहरे में, चीत्कार कर पुकारता
हर पल भेदता हृदय, फिर तोड़ता अपार
 
ये कुचलता है अविश्वास 
ये निचोड़ता है बंधन 
ये चौंकाता है जीवन 
ये बांधता है आस
 
चीनी-सा मीठा, नीम-सा कड़वा
मिर्ची-सा तीखा, नींबू-सा खट्टा 
 
ये रतिदेवी-सा ललचाता है 
ये वशीभूत कर तड़पाता है 
ये बातों से बहलाता है 
ये शिकार बना फंसाता है 
 
नसों में रेंगता, हृदय में घूमता
स्वेच्छा को दबाता, भावों को सताता
 
ये गलाता है अहं
ये दफनाता है गुमान
ये चुभाता है चिंता 
ये गिराता है झूठ 
 
कामदेव के धनुष-बाण-सा 
किसी भी पल चल जाता है 
 
ये आत्मा गिरफ्त में लेता है 
ये काल से जीवन खींचता है 
ये मध्यरात्रि में सिसकता है 
ये सूर्योदय में कूंजन करता है 
ये महासागर शांत करता है 
ये सुस्थिर लहर लाता है 
 
गोधूलि बेला के आगमन पर 
खुशियां घर में भर लाता अपार 
 
ये जमाता है विश्वास
ये रिझाता है एहसास 
ये ढांकता है उम्मीद
ये छिपाता है जज्बात
 
सौभाग्य नयन भिगाता, आंसू-मुस्कान के साथ 
नित नव गीत सुनाता भूल पुरानी बात 
 
ये पीछा करता है 
ये ढूंढ ही लाता है 
ये भीतर समाता है 
ये गुदगुदाता है 
ये खुद से 'निर्जन'
खुद को मिलवाता है। 

 

वेबदुनिया पर पढ़ें