उम्मीदें दामन को कसके पकड़े हुए,
आंधियों की औकात को हवा देते है
भोर के भानु-सी मुस्कान सजा देते हैं
बहारों में शजर को बाखूब सजा देते हैं,
करारी धूप में खुद को भी जला लेते हैं
जानते हैं ये दिन लौटकर नहीं आते है
इंतजार में कितने मधुमास गंवा देते है
नई-नई कोंपलों को भी जीवन देते हैं
आंख से मोती बनके टूट बिखर जाते हैं
कुछ ऐसा जिंदगी का इम्तेहान देते हैं
मर के अपनी हस्ती को हौंसला देते है
जब कभी शजर का साथ छोड़ देते हैं