पर मैं अजीब नहीं कहता हूं।
सदियों से तुमने
जिन पत्थरों पर विश्वास किया
नित पुष्प चढ़ाए और दीप जलाए
ये पत्थर क्या जाने मन की चाहें,
ये पत्थर क्या पहचानें अंतर की दाहें
प्राणों की सुर तानों को
यह पत्थर क्या आभास करेगा?
हे पत्थरों की इबादत करने वालों...
क्यों अर्पित करते हो मन की ममता