कविता : मर्ज

Webdunia
- पंकज सिंह
 
किया खूब इलाज 
मर्ज निकला लाइलाज 
ना आई तुझको लाज 
बेशर्म कब आओगी बाज 
 
जिन्दगी समझ बजाया साज
किया खूब रियाज 
गमों की गिरी ऐसी गाज 
तबीयत हुई नासाज 
 
किया ना जाए काज 
बिना पतवार का जहाज 
पत्थरों से टकराता आगाज 
ना करना तुम ऐतराज  
 
खत्म हुए अब अल्फाज 
तबस्सुम में कहां ताज 
नहीं समझना मुगल महाराज 
जो यादों में बनवायेगें ताज 

सम्बंधित जानकारी

अगला लेख