हिन्दी कविता : कबीर तुम कहां हो?
दीप्ति गुप्ता
कबीर तुम कहां हो ?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है
तुमने कहा --
'जो नर बकरी खात है, ताको कौन हवाल '
पर अब नर ही नर को खात है, बुरा धरती का हाल !
कबीर तुम कहां हो?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है,
तुमने कहा --
'मन के मतै न चालिए '
पर - अब, मन के मतै ही चालिए, स्वाहा सब कर डालिए !
कबीर तुम कहां हो ?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है,
तुमने कहा --
'तू-तू करता तू भया, मुझ में रही न हूं '
पर अब - तू तू मैं मैं हो रही, हर मन में बसी है 'हूं',
कबीर तुम कहां हो?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है,
तुमने कहा --
'राम नाम निज पाया सारा, अविरथ झूठा सकल संसारा',
पर अब-राम नाम तो झूठा सारा, सुंदर, मीठा लगे संसारा,
कबीर तुम कहां हो?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है,
तुमने ठीक ही कहा था --
'झीनी झीनी बीनी चदरिया, ओढ़ के मैली कीन्ही चदरिया'
आज हुआ बुरा हाल यूं उसका, मैल से कटती जाए चदरिया !
कबीर तुम कहां हो?
आज इस युग को तुम्हारी जरूरत है,
भटके हुओं को तुम्हारी वाणी की जरूरत है,
भूले हुओं को दिशा की जरूरत है।