-सिमरन बालानी
कल जैसे ही हाथ में मोबाइल उठाया,
मेरा बेटा दौड़ा-दौड़ा आया।
'मां मोबाइल दे दो जरूरी काम है', बोला,
मेरा गुदगुदाता व चहकता मन अचानक डोला।
यूं तो कहने को सारी विरासत उसकी,
इसे हाथ में लेकर हम क्या मिसालें बनाएंगे,
'मैंने-तूने मोबाइल कितनी देर त्यागा',
क्या यह कहानी आने वाली पीढ़ी को सुनाएंगे।
वास्तविक छोड़ काल्पनिक में ढूंढते मौसम की बहार है,
फिर समझते हैं कि उंगलियों पर हमारे अब संसार है।
फूलों का महकना, चिड़ियों का चहकना,
मौसम का बहकना आज भी बरकरार है।
आज महसूस किया कि दिशाहीन हमने ही किया बच्चों को,
उनकी नहीं प्रकृति से कोई तकरार है।