हिन्दी कविता : लानत है राष्ट्रविरोधी धंधों पर

यह सर्दी बरपा रही है कैसा कहर।
आलम को गिरफ्त में लिए है शीतलहर।
ठिठुरन के आगोश में हर बस्ती, गांव, शहर।
पारा और भी गिर-गिर जाता है शामो-सहर।।1।।
 
सूरज भी लुका-लुका है भरी दोपहर।
कम पड़ने लगे हैं सभी शालो-स्वेटर।।
पक्षी, पेड़, जीव सब सहमे-सहमे,
घनी बर्फबारियां हैं उधर पहाड़ों पर।।2।।
 
कश्मीर घाटी अब मुक्त है आतंकी ताप से,
शांति/ सुकून की ठंडक फैल रही है उधर।
पर रचनात्मक सुधारों पर अंधा विरोध यहां,
फैला रहा है दूषित राजनीति का कुहासा जमकर।।3।।

 
शीत की इस ठंडक में अंधविरोध की आग।
बंदूक है नासमझ लोगों के कंधों पर।।
ओ! कुटिल राजनीति वालों! लानत है,
तुम्हारे इन राष्ट्रविरोधी धंधों पर।।4।।

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