टीवी/ अखबार भरे होंगे
हमारी सनसनियों से, चर्चों से।
न्यायालयों के समय ज़ाया होंगे,
तो हों, जन-धन के खर्चों से।।
जब सनसनियां खतम हो जायेंगी,
जनता का ध्यान बंट जायेगा।
राजनीति वाले इन्हें गले लगाए हुए
अपनी गफलत में जी रहे हैं।
आम-जन तो अपनी धुन में खोए